छंद
छंद कविता का अभिन्न अंग है,
छंद से है कविता की शान,
सरस और प्रभावशाली हो,
गति और लय से बढ़ता मान।
जिन छंदों की गणना में हैं,
लेते वर्णों का आधार,
उनको वर्णिक छंद कहते हैं,
सम, अर्द्धसम, विषम प्रकार।
जिन छंदों की व्यवस्था का,
मात्राएं ही हों आधार,
उनको मात्रिक छंद कहते हैं,
सम, अर्द्धसम, विषम प्रकार।
चौपाई सम मात्रिक छंद है,
चार चरण सोलह मात्राएं,
अंत में जगण-तगण निषिद्ध हैं,
अंत में वर्ण गुरु ही आएं।
चार चरण चौबीस मात्राएं,
ग्यारह और तेरह पर यति हो,
दोहा अर्द्धसम मात्रिक छंद है,
सम चरणों में तुक मिलती हो।
चार चरण चौबीस मात्राएं,
तेरह और ग्यारह पर यति हो,
सोरठा अर्द्धसम मात्रिक छंद है,
विषम चरणों में तुक मिलती हो।
रोला सम मात्रिक छंद है,
चार चरण चौबीस मात्राएं,
ग्यारह और तेरह पर यति हो,
एक-दो, तीन-चार में तुक पाएं।
दोहा-रोला छंद जोड़कर,
कुण्डलिया की कर पहचान,
छः चरण चौबीस मात्राएं,
प्रथम-अंतिम शब्द समान।
सम मात्रिक छंद हरिगीतिका,
सोलह और बारह पर यति हो,
चरण परस्पर होते तुकांत हैं,
चरणांत में लघु-गुरु हो।
सवैया वर्णिक छंद कहाए,
इक्कीस से छब्बीस तक वर्ण आएं,
चारों चरण की तुक मिलती हो,
सात सगण और दो गुरु आएं।
कवित्त मुक्तक वर्णिक छंद है,
चार चरण इक्कतीस मात्राएं,
सोलह और पंद्रह पर यति हो,
अंतिम वर्ण गुरु ही आएं।
छंद बिना कविता पंगु है,
कविता से है छंद की शान,
दोनों के संयोग से होता,
सरस मधुरता का रसपान।
— लीला तिवानी