ओम्कारेश्वर में शंकर का आगमन
सनातन के अर्थ को समझने के लिए समस्त वेदों, महाकाव्यों, उपनिषदों, धर्म ग्रन्थों का अध्ययन आवश्यक होगा। हमारे ऋषि, सन्तों, महात्माओं ने सनातन के सिद्धांतों को सरल रूप में समय समय पर वर्णित किया। जिससे आम जन मानस को सनातन धर्म के व्यापक रूप को समझने में सरलता हो।
धर्म के प्रति उदासीनता व शून्यता की विपरीत परिस्थिति में आदि शंकराचार्य जी का जन्म हुआ। आदि गुरु शंकराचार्य जी को भगवान शिव का ही अवतार माना गया है। श्री आदि शंकराचार्य ने प्राचीन भारतीय उपनिषदों के सिद्धान्तों को पुनर्जीवित करने का कार्य किया इसलिए यह भी कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य जी ने हिंदू धर्म की पुनर्स्थापना करने का कार्य किया है। धर्म को लेकर लोगों में फैलाई जा रही तरह-तरह की भ्रांतियों को उन्होंने मिटाने का काम किया।
आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म आठवीं सदी में वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष पंचमी को हुआ था। भगवान शिव के अवतार शंकराचार्य का जन्म केरल के कालड़ी गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम शिवगुरु था। वह शास्त्रों का अच्छा ज्ञान रखते थे और माता का नाम आर्यम्बा था। बचपन में उनका नाम शंकर रखा गया और आगे चलकर वह आदि गुरु शंकराचार्य कहलाए। उन्होंने बहुत ही कम उम्र में संन्यासी बन गए थे। उनका निधन केवल 32 साल की उम्र में हो गया था।
अद्वेत के सिद्धांतों को जगतगुरु आदि शंकराचार्य जी ने उसी रूप में वर्णित किया जैसा वेद व उपनिषदों में वर्णित है। उन्होंने सरल रूप में अद्वेत को 5 पदों में रखा जो उल्लेखित है
1) ब्रह्म ही सत्य है
2) ब्रह्मांड ब्रह्म द्वारा ही निर्मित
3) ब्रह्म व आत्मा एक ही है
4) मानव अनंत शक्ति व ज्ञान का स्त्रोत है
5) मानव जीवन का लक्ष्य मुक्ति
6) मुक्ति का साधन ज्ञान है
उन्होंने हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए चार अलग दिशाओं में चार मठों की स्थापना की जो इस प्रकार हैं – उत्तर दिशा में बद्रिकाश्रम में ज्योर्तिमठ, पश्चिम दिशा में द्वारका में शारदा मठ, दक्षिण दिशा में श्रृंगेरी मठ और पूर्व दिशा में जगन्नाथ पुरी में गोवर्धन मठ। चार धामों के नए रूप में प्रचार प्रसार में भी इनका योगदान रहा। ये चार धाम चार दिशाओं में स्थित है यानी उत्तर में बद्रीनाथ, दक्षिण रामेश्वर, पूर्व में पुरी और पश्चिम में द्वारिका पुरी। प्राचीन समय से ही ये चार धाम तीर्थ के रूप मे मान्य थे, लेकिन इनके महत्व का प्रचार जगत गुरु शंकराचार्य जी ने किया था।
तीर्थनगरी ओम्कारेश्वर में जगतगुरु आदि शंकराचार्य की 108 फीट ऊँची प्रतिमा ” स्टेच्यू ऑफ़ वननेस” का अनावरण मध्यप्रदेश मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के हाथों हुआ। यह पूरी दुनिया में शंकराचार्य की सबसे ऊची प्रतिमा हैं, नर्मदा किनारे देश का चतुर्थ ज्योतिर्लिंग ओम्कारेश्वर शंकराचार्य जी की दीक्षा स्थली है जहां वे अपने गुरु गोविंद भगवत्पाद मिले और यहीं 4 वर्ष रहकर उन्होंने विद्या अध्ययन किया।
प्रतिमा का अनावरण करने से पहले शिवराज सिंह ने अपनी पत्नी के साथ पूजा-अर्चना कर हवन में भाग लिया और फिर प्रतिमा का अनावरण करने के बाद संतों के साथ प्रतिमा की परिक्रमा भी की. सीएम शिवराज सिंह चौहान ने इस अवसर पर एक तस्वीर साझा करते हुए लिखा, ‘आचार्य शंकर के विराट स्वरूप में समर्पण ! श्री शंकर भगवत्पाद सनातन वैदिक संस्कृति के सर्वोच्च प्रतिमान हैं। धर्म-संस्कृति के रक्षणार्थ उन्होंने जो श्रेष्ठ कार्य संपादित किए,वह अद्वितीय हैं। ज्ञानभूमि ओंकारेश्वर से उनके विचारों का लोकव्यापीकरण हो और समस्त विश्व एकात्मता के सार्वभौमिक संदेश को आत्मसात करे.आध्यात्मिक ऊर्जा से अनुप्राणित आचार्य शंकर के श्रीचरणों में ही शुभता और शुभत्व है, संपूर्ण जगत के कल्याण का सूर्य अद्वैत के मंगलकारी विचारों में ही निहित है।
12 वर्ष की आयु में ओंकारेश्वर से ही अखंड भारत में वेदांत के लोकव्यापीकरण के लिए प्रस्थान किया, इसलिए ओम्कारेश्वर के मान्धाता पर्वत पर 12 वर्ष के आचार्य शंकर की प्रतिमा की स्थापना की गई, इस योजना के प्रथम चरण में आदि शंकराचार्य की 108 फीट ऊंची प्रतिमा बनाई गई। इसे अद्वेत धाम का नाम दिया गया है।
ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग के साथ ही इस अद्वेत धाम के दर्शन से नर्मदा घाटी में पर्यटन बढ़ेगा, देश विदेश के हजारों विदेशी पर्यटक अद्वेत व सनातन को समझने के लिए यहां आएंगे। शिवराज सरकार ने इस लोक का शिलान्यास करके बड़े ही प्रशंसा का कार्य किया है। इस ऐतिहासिक लोक व मूर्ति अनावरण से उत्तर से लेकर दक्षिण व पूर्व से लेकर पश्चिम तक अखण्ड भारत में सनातन धर्म ध्वजा फहराने वाले जगद्गुरु आदि शंकराचार्य जी को आने वाली कई सदियों तक स्मरण किया जाएगा।
मंगलेश सोनी