कविता
कलम हाथ में लेकर अक्सर
एक ख्याल दिल में आता है
क्या प्रेम प्यार कुछ भी नहीं
पैसों से प्यार तोला जाता है
जिंदगी बन गयी त्रिफ चाल
पत्तों को यूँ फ़ेंटा जाता है
चाल पर चाल चलकर ज्यूँ
दिल को बहलाया जाता है
बेगम को बनाकर इक्का
गुलाम के जैसे चलता है
बादशाहत को जैसे उसकी
आज चूना लगाया जाता है
रिश्तों को रखकर ताक पर
आज दीया जलाया जाता है
माँ -बाप के अरमानों का
जैसे मख़ौल उड़ाया जाता है
ये कैसी दुनिया है तेरी कृष्णा
मेरा तो वहम टूटा जाता है
तू ही दिखा अब रस्ता मुझे
यहाँ तेरा प्रेम बदनाम होता है
— वर्षा वार्ष्णेय