घोड़े पालना एक महंगा शौक है
घोड़ो का उपयोग तांगे में ज्यादा होता था।तांगे वर्तमान में बंद है।अब घोड़ी का उपयोग शादी के समय दूल्हे के लिए होता है।याता के कई साधन वर्तमान में उपलब्ध है।पहाड़ी दुर्गम क्षेत्रो में घोड़े खच्चर के बिना जाना कठिन होता है।कई क्षेत्रो में कानवाई हेतु घुड़सवार का उपयोग किया जाता था।देेश मे पहला परखनली घोडा मेरठ के पास बाबूगढ़ स्थित सेना की छावनी के अश्व प्रजनन केंद्र में देश के पहले व विश्व के सातवे देश के रूप मे करीब तीन दशक पूर्व भारत ने परख नली प्रजनन की उपलब्धि हासिल कर ली थी |उस समय इस पर खर्च ७७ लाख रुपये आया था |महंगे परख नली अश्व प्रजनन से ख्याति अवश्य हुई है |प्राचीन ग्रंथों मे बताया गया है की देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो उसमे चौदह रत्न निकले थे |उन्ही रत्नों मे “उच्चे श्रवा” घोडा भी था | देखा जाये तो राजा -महाराजाओं से लेकर भारतीय सेना ,पुलिस के पृथक अश्वारोही दलों मे घोड़े अभिन्न अंग बनने के साथ महत्वपूर्ण साधन माने जाते है| दुर्गम स्थानों ,जंगल, पहाड़ो आदि के लिए घोड़ों की उपयोगिता महत्वपूर्ण होती है |घोड़ों के बारे मे कहा जाता है कि घोडा कभी बैठता नहीं ,बल्कि रात मे लेट कर सोना पसंद करता है | घोड़े के शरीर पर रंग,चिन्ह ,ऊँचाई से घोड़ो की कुशलता और काम में आने वाला जाना जाता है।इंजनों कि शक्ति का अनुमान देने वाले घोड़ों मे भी नस्ले पाई जाती है|मारवाड़ी घोड़े के कान ऊपर जाकर आपस मे मिल जाते है | राजस्थान मे तो अश्व दिवस भी मनाया जाता है | घोडा पालना हर किसी के बस कि बात नहीं होती है| घोड़े कि सफाई ,मालिश,पोष्टिक आहार महंगा होता है |अश्व स्वामी को घोडा पालने मे खर्च ज्यादा आता है| घोडा पालने का शोक काफी महंगा होने के बावजूद शौकिया लोग घोड़े के बिना अपनी जिन्दगी को अधूरी समझते है |खैर , जिनके पास घोडा हो उसकी शान अलग ही होती है |कुल मिलाकर अश्व परखनली प्रजनन अच्छी नस्लों के लिए बेहतर साबित होगा|घोडा पालने का शौक काफी महंगा होने के बावजूद शौकिया लोग घोड़े के बिना अपनी जिन्दगी को अधूरी समझते है |खैर ,जिनके पास घोडा हो उसकी शान अलग ही होती है |
— संजय वर्मा “दॄष्टि “