ओ निर्मोही..
सुनता जा ओ निर्मोही पथिक
देख-देख तूने क्यों किया भ्रमित?
यह लोचन अब ढूंढे हैं तुझको
मुझे बिसार कर क्या तू है हर्षित?
टीस जिया की नहीं पहुंची तुम तक,
सुख गए अश्रु अब नयन गए थक|
हर आहट पर दौड़ पड़े अब तो येपग
पथरा गई अखियां निहारू अपलक|
मिली नहीं पर दबी हुई है चाह,
नहीं पहुंची क्या तुम तक मेरी आह?
जिक्र ना कर पाऊं पर फिक्र हर पल
लेता जा पथिक इस दिल की भी थाह|
कई कई पाती हमने लिख डाली
पते में बस दिल रख दिया है खाली,
ओ रंगरेज बस रंग भरना बाकी
मिली वो पाती खाली दिल वाली?
रक्ताभ गुलमोहर सा रंग भर दे,
बसंती अमलतास सा तन कर दे,
धानी धरा सी लहराऊं लजाउँ अब
सतरंगी सा तू चूनर तो कर दे|
— सविता सिंह मीरा