क्या कोई अर्थ है इस दौड़ में…
यह क्यों मेरे अंदर !
आग है,जलाती है मुझे नित्य
जहाँ विषमता है वहाँ तुरंत
फूट निकल आती है
मेरे मुँह से विरोधी आवाज़
बदले में घाटा उठाना
विद्रोही का ठप्पा लेना
आम बात है, अकेले हो जाना
अपनी अलग दुनिया में
निराला बनकर रह जाना,
बहुत दूर की बात है सत्य
इस दुनिया में, कमाई का
बड़ा साधन बनी है पढ़ाई
चलाकी बनने लगी है जनता
जो जितना पैसा खर्च करता है
अपनी पढाई के लिए
चौ गुणा, दस गुणा कमाने का
लालच को संवार नहीं कर पाता
बड़े – बड़े लोग, कई ऐसे हैं
भीतर और बाहर एक सा नहीं रहते
अंतरंग में कूदकर देखने से
स्पष्ट नज़र आती है असलियत
उनकी कथनी और करनी में
ज्यादा फरक दिखाई देता है
आज की दुनिया में
लोग असीम आशाओं के अंगारे पर
नाचने लगे हैं, आह – वाह – कराह की
बहुत बड़ी प्रतिभा है जग में
माँ – बॉप का ख्याल नहीं
सगे – संबधी का परवाह नहीं
एक अंधा दौड़ है यह व्यष्टि तत्व
एक दूसरे को धोखा देते
एक दूसरे से धोखा खाते
‘जिंदगी एक जंग है’
सुख – सुविधा एवं भोग – विलास का
अपनी – अपनी दर्जा है
जिंदगी दिखावटी है आज।