इतिहास

लाल बहादुर शास्त्री जन्म जयंती (2 अक्टूबर)

एक प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ स्वतंत्रता सेनानी तथा जवाहरलाल नेहरू के बाद भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री बनने का गौरव जिन्हें प्राप्त हुआ वह लाल बहादुर शास्त्री एक अद्वितीय व्यक्तित्व वाले नेता हुए। देश के अन्नदाता किसान और सेना को नमन करते हुए देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान, जय किसान का नारा दिया था। 2 अक्टूबर को उन्हीं लाल बहादुर शास्त्री की जयंती है। छोटी कद काठी के शास्त्री जी अपने बुलंद फैसलों के लिए जाने जाते हैं। भारत को दुर्भाग्य से उनका नेतृत्व अधिक समय तक नही मिला, परन्तु जितने समय वे देश के प्रधानमंत्री रहेउनके नेतृत्व को जनता आज भी स्मरण करती है। आज 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी के साथ लाल बहादुर शास्त्री को देश नमन कर रहा है। 

आपका जन्म पंडित दीनदयाल उपाध्याय नगर (मुगलसराय) उत्तर प्रदेश में हुआ, आपके पिता जी प्राथमिक शाला में शिक्षक थे, बाद में राजस्व विभाग में लिपिक बने। परिवार में सबसे छोटे होने के कारण इन्हें नन्हें कहकर पुकारा जाता था, बाल्य काल मे ही पिता के देहावसान के बाद आपकी आगे की शिक्षा ननीहाल में हुई। काशी विद्यापीठ से इन्होंने संस्कृत में स्नातक करके शास्त्री की उपाधि प्राप्त की। तभी से इनके नाम के साथ शास्त्री जुड़ गया। शास्त्री अद्भुत प्रतिभा व व्यक्तित्व के धनी थे। 

गांधीवादी विचारधारा के कारण अहिंसा आत्मक आंदोलन को अंग्रेज सरकार ने भारतीय जनता की कमजोरी समझ लिया तब भारत की जनता में क्रांति का नया जोश भरने के लिए शास्त्री जी ने मारो नहीं मारो का नारा दिया इस नारे का व्यापक प्रभाव पूरे देश में हुआ, जिसने पुरे देश में स्वतन्त्रता की ज्वाला को तीव्र कर दिया और स्वतंत्रता आंदोलन में आक्रामकता के साथ युवक को क्रांतिकारी अंग्रेज सरकार के प्रतिरोध में डटकर सम्मिलित हुए हम सभी जानते हैं 1942 के बाद भारत में स्वतंत्रता की क्रांति ने ऐसी गति पकड़ी जो सन 1947 में स्वतंत्रता के प्राप्त होने के बाद ही रुकी। इससे आप समझ सकते है कि लाल बहादुर शास्त्री गरम दल के नेता रहे, वे आक्रामकता में विश्वास रखते थे।

शास्त्री जी जब 1964 में प्रधानमंत्री बने, तब उन्हें सरकारी आवास के साथ ही इंपाला शेवरले कार मिली, जिसका उपयोग वह न के बराबर ही किया करते थे। वह गाड़ी किसी राजकीय अतिथि के आने पर ही निकाली जाती थी।’ किताब के अनुसार एक बार उनके पुत्र सुनील शास्त्री किसी निजी काम के लिए इंपाला कार ले गए और वापस लाकर चुपचाप खड़ी कर दी। शास्त्रीजी को जब पता चला तो उन्होंने ड्राइवर को बुलाकर पूछा, फिर उन्होंने अपनी पत्नी को बुलाकर निर्देश दिया कि उनके निजी सचिव से कह कर वह प्रति किलोमीटर की दर से सरकारी कोष में पैसे जमा करवा दें। यही नही भारत के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी फ़टे कुर्ते ठंड में कोट के नीचे पहनते थे, ताकि खादी जिसे बनाने में कई लोगो का श्रम लगा उनका अपमान ना हो। 

सन 1965 में जब पाकिस्तान हमला करके कश्मीर में घुस आया तब प्रधानमंत्री ने सेना को खुली छूट देते हुए सेना प्रमुखों से उनके विचार मांगे की देश को आपको सहयोग के लिए क्या करना चाहिए हम करेंगे। कश्मीर पर हमले के जवाब में भारतीय सेना लाहौर की तरफ मार्च करेगी। इशारा पाते ही उसी दिन रात्रि में करीब 350 हवाई जहाजों ने पूर्व निर्धारित लक्ष्यों की ओर उड़ान भरी।  कराची से पेशावर तक जैसे रीढ़ की हड्डी को तोड़ा जाता है, ऐसा करके सही सलामत वे लौट आए। इतिहास गवाह है, उसके बाद क्‍या हुआ। शास्त्री जी ने इस युद्ध में राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और ”जय जवान-जय किसान” का नारा देकर, इससे भारत की जनता का मनोबल बढ़ाया।  पाकिस्तान के 3,800 सैनिक मारे जा चुके थे। इस युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के लाहौर के करीब तक पहुचकर 1840 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा भी कर लिया था। ऐसे में पाकिस्तान के सामने हथियार डालने के अलावा अन्‍य कोई मार्ग शेष नहीं बचा था। इससे यह ज्ञात होता है कि देशभक्ति व कर्तव्यनिष्ठा में वे कितने अग्रणी रहे।

अस्पर्शयता के संबन्ध में शास्त्री जी ने एक समय कहा था कि यदि कोई एक व्यक्ति भी ऐसा रह गया, जिसे किसी रूप में अछूत कहा जाए, तो भारत को अपना सिर शर्म से झुकाना पड़ेगा। इसलिए जितना जल्दी हो सके अपने मन से यह विचार तुरंत त्‍याग दो। आज के समय में भी लाल बहादुर शास्त्री जी के समरसता के इस विचार को अपनाने की आवश्यकता है।

 11 जनवरी 1966 को उज्बेकिस्तान के ताशकंद में उनकी मौत हो गई थी। साल 1965 के युद्ध के बाद वह पाकिस्तान से वार्ता करने के लिए वहां गए हुए थे। बैठक में भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने युद्ध समाप्त करने के एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। 11 जनवरी 1966 की ही रात को संदिग्ध परिस्थितियों में शास्त्री जी की मौत हो गई थी। उनकी मौत कैसे हुई, यह 49 साल के बाद आज भी राज है। मेडिकल रिपोर्ट में कहा गया है कि शास्त्रीजी की मौत हार्ट अटैक के चलते हुई, लेकिन उनकी पत्नी का आरोप था कि उन्हें जहर दिया गया था। कहा जाता है कि लालबहादुर शास्त्री की मौत के बाद उनका शरीर नीला पड़ गया था। इससे इस बात को तूल मिला कि उनकी मौत दिल का दौरा पड़ने से नहीं, बल्कि जहर से ही हुई थी। इसके बाद उनकी ड्यूटी पर तैनात बटलर को गिरफ्तार किया गया, लेकिन कोई ठोस सबूत नहीं मिलने पर उसे रिहा कर दिया गया। हालांकि, बटलर के बयान पर भी कई सवाल खड़े हुए। प्रधानमंत्री कार्यालय में वह केस फाइल मौजूद है, लेकिन उसे सार्वजनिक नहीं किया गया है। शास्त्री जी की मौत की पहली जांच राज नारायण ने की थी, हालांकि इसमें कोई नतीजा नहीं निकला था। यह भी आरोप लगाए जाते हैं कि शास्त्री जी का पोस्टमार्टम भी नहीं हुआ। इसके बाद साल 2009 में केंद्र सरकार ने कहा कि शास्त्री के निजी डॉक्टर आरएन चुग और रूस के कुछ डॉक्टरों ने मिलकर उनकी मौत की जांच की थी। लेकिन, सरकार के पास उसका कोई रिकॉर्ड नहीं है। इतना ही नही, लाल बहादुर शास्त्री के बेटे अनिल शास्त्री का कहना है, ‘उनकी मां ने हवाई अड्डे पर शव देखा तभी उन्हें मौत पर शक हुआ था, लेकिन सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। रहस्यमय मौत पर शक और भी गहराता है क्योंकि राज नारायण कमीशन के सामने पेश होने से पहले निजी डॉ. चुग की परिवार समेत हादसे में मौत हो गई थी।’ भारतीय दूतावास पर भी लापरवाही बरतने के आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि ताशकंद में लाल बहादुर शास्त्री जिस कमरे ठहरे हुए थे, वहां कोई बेल या टेलीफोन नहीं था। इससे उन्हें कोई प्राथमिक चिकित्सा भी नहीं मिल पाई। भारतीय दूतावास ने लापरवाही की थी।

देश का एक महान नेतृत्व असमय ही काल के गाल में समा गया, परन्तु समझने वाली बात यह है कि देश के प्रधानमंत्री की मृत्यु को कोई भी देश का तंत्र इतना हल्के में ले सकता है क्या ? क्या कारण रहे जो उनकी मृत्यु के बाद कोई जांच, मेडिकल रिपोर्ट, साक्षात्कार सामने नही आया। इतने वर्षों बाद देश आज भी इन बातों से अनभिज्ञ है। सारा देश आज भी उनका ऋणी है और सदैव रहेगा।

— मंगलेश सोनी

*मंगलेश सोनी

युवा लेखक व स्वतंत्र टिप्पणीकार मनावर जिला धार, मध्यप्रदेश