दीवाली
आयी मंगल दीप दीवाली
छाई घर-घर रौनक निराली
साथी ! दिया जलाओ स्नेह भरा
ताकि स्वर्ग बन जाये अपनी धरा
मिलजुल कर मिटा दो अंधेरा
साथी ! खुशियों का ला दो सवेरा
अन्न -धन से भर जाए हर आंगन
सब जन मिल करो ऐसा जतन
मन से ईर्ष्या- जलन मिटा दो
अंतर्मन में ज्ञान के दीप जला दो
लाख तूफान राहों में आयेंगे
परंतु ज्ञान के दीप न बुझ पायेंगे
अमावस निशा भी चली जायेगी
पूर्णिमा वाली उजली रात आयेगी
तुम सहर्ष स्वीकार करो हर चुनौती
भोर की पहली किरण यही बताती
हर घर हो जाये सुखी- समृद्धिशाली
तो निश्चित ही होगी हर रोज दीवाली
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
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