लघुकथा

लड़ाई 

दुर्गा मंदिर में मूर्तिकार मूर्तियों में रंग भर रहे थे। आज भी तीन बच्चे हाजिर थे, मूर्ति देखने।मूर्तिकार अपने काम में व्यस्त थे लेकिन उनके कान खड़े थे। दस- बारह साल के बच्चे आपस में बातें कर रहे थे।

“देखो असुर कितना बलवान दिखता है” पहला बच्चा बोला।

“और भयंकर भी…!” दूसरे बच्चे ने कहा।

” माँ दुर्गा असुर को पराजित कर सकेगी? अकेली है! पहला बच्चा ने चिंता जताई।

“अकेली नहीं है माँ दुर्गा। देखो शेर भी असुर पर धावा बोलने वाला है ओर साँप भी फुंफकार रहा है।” दूसरे बच्चे ने कहा।

“माँ दुर्गा ने त्रिशूल असुर के सीने में धँसा दी है। असुर की मौत निश्चित है।” तीसरे बच्चे ने कहा।

“काश अंकिता को भी किसी का साथ मिला होता!” दूसरे बच्चे ने आह भरते हुए कहा।

“कौन अंकिता?” तीसरे बच्चे ने सवाल किया।

“दो दो अंकिता! दरिंदों ने जान ले ली दोनों अंकिता की। मम्मी बोल रही थी औरत को कमजोर पाकर दरिंदों ने मार दिया।” दूसरे बच्चे ने कहा।

“अंकिता को माँ दुर्गा के समान लड़ना चाहिए था।” पहले बच्चे ने कहा।

“जरूर लड़ी होगी,लेकिन किसी का साथ नहीं मिला होगा!” दूसरे बच्चे ने कहा।

— निर्मल कुमार डे

निर्मल कुमार डे

जमशेदपुर झारखंड [email protected]