कविता

लम्हा-लम्हा जिन्दगी

जिन्दगी के लम्हों को
जितना भी समेटो
रेत की ढेर है यह
झरती ही जाती है।

बनाओ अगर इसमें
अपना नामो-निशान
उड़ती हवा का झोंका
उसे मिटा जाता है।

हर पल बनता है
यहाँ बालू का टीला
समय के साथ-साथ
दिशा बदलता रहता है

कभी हम न होंगे यहाँ
कभी तुम न होगे यहाँ
कभी न भीड़ होगी यहाँ
कभी न होगी तन्हाई यहाँ।

पर लम्हों का पुलिन्दा
गुजरता ही जाएगा
जाते-जाते वह अपनी
हर दास्ताँ सुनाएगा।

डॉ. अनीता पंडा

सीनियर फैलो, आई.सी.एस.एस.आर., दिल्ली, अतिथि प्रवक्ता, मार्टिन लूथर क्रिश्चियन विश्वविद्यालय,शिलांग वरिष्ठ लेखिका एवं कवियत्री। कार्यक्रम का संचालन दूरदर्शन मेघालय एवं आकाशवाणी पूर्वोत्तर सेवा शिलांग C/O M.K.TECH, SAMSUNG CAFÉ, BAWRI MANSSION DHANKHETI, SHILLONG – 793001  MEGHALAYA [email protected]