गजल
खुशबू को हवाओं का पता क्यों नहीं देते
उस शख्स को महफिल में बुला क्यों नहीं लेते
उस जलवे को महसूस जो करने की तड़प है
पल भर के लिए ध्यान लगा क्यूँ नहीं लेते
आँखें जो खुली होंगी तो संसार दिखेगा
उस चेहरे को आँखों में बसा क्यों नहीं लेते
चाहो तो उसे देखो करो गुफ्तगू जी भर
सजदे में जरा सिर को झुका क्यों नहीं लेते
करता हूँ जो महसूस वही बोल रहा हूँ
सच मैंने कहा है तो सजा क्यों नहीं देते
या तो मैं ये समझूँ कि हूँ मैं ‘शान्त’ कोई गैर
वरना मेरी बातों का कहा क्यों नहीं लेते
— देवकी नन्दन ‘शान्त’