कविता

समय रुकता नहीं कभी

घर की चारदीवारी में उम्र बीत गई सारीआओ सखी दो चार बातें करें प्यारी प्यारी

अपने बचपन जवानी के याद करें वो दिन

जिनसे महकती थी आंगन की फुलवारी

यह दीवारें जुदाई की बीच में नहीं थी

सब ऐसे ही जब चाहे चले जाते थे आर पार

कितनी प्यार मोहब्बत थी सबके बीच

लांघ नहीं सकते जो बीच में है नफरत की दीवार

समय रुकता नहीं कभी जवानी कभी बुढापा

बीत गया जो एक बार दोबारा नहीं आता

कभी रिश्तेदारों की भीड़ लगी रहती थी

व्यस्त हैं सारे आज कोई नहीं आ पाता

खिजां है अब जिंदगी की बहार नहीं आएगी

जीवन की कश्ती न जाने कहाँ ले जाएगी

हम क्यों परेशान हों बच्चों के लिए

नई पीढ़ी है अपने हिसाब से जियेगी खाएगी

— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र