कविता
शुक्रगुजार होना चाहिए….
आदमी को उन मौसमों का भी
शुक्रगुजार होना चाहिए
जो दबे पांव आंगन से बिना दस्तक दिए
निकल जाते हैं ।
आदमी को उन लोगों का भी
शुक्रगुजार होना चाहिए जो जरूरत के वक्त ही
याद करते हैं ।
आदमी को उन अंधेरों का भी
शुक्रगुजार होना चाहिए जिनसे लड़ते हुए ही
उजालों का सही मायने में महत्व
समझ आता है ।
आदमी को रास्ते के उन कांटों का भी
शुक्रगुजार होना चाहिए जिनको कुचलकर
मंजिल पर पहुंचने का
हुनर आता है।
आदमी को आस्तीन में छुपे सांपों का भी
शुक्रगुजार होना चाहिए जिनकी वजह से
वक्त बेवक्त सावधान रहने की
आदत पड़ती है ।
आदमी को उन तमाम मुश्किल दिनों का
शुक्रगुजार होना चाहिए जिनको झेलते हुए
अच्छे दिनों का महत्व क्या है
समझ आता है ।
आदमी को हर एक सुबह उठकर
उस ईश्वर का शुक्रगुजार होना चाहिए कि उसने
जीने के लिए
एक दिन और दिया वरना बहुत से लोग
रात सोकर सुबह उठते ही नहीं हैं ।
अशोक दर्द डलहौजी चंबा हिमाचल प्रदेश