15 अगस्त के दिन भारत को आजाद न किया जाय
चलते चलते देश की सियासत आज ऐसे दो राहे पर आकर खड़ी हो गयी है जहां पर देश तो एक ही है किन्तु शब्दों के दो चेहरे हैं अपने अपने चेहरे की छाप को लेकर इन दिनों सत्ता के गलियारे में खींचा तानी जमकर मची हुयी है, एक शब्द का चेहरा है भारत, तो दूसरे शब्द का चेहरा है इण्डिया दोनों ही चेहरे अपने आपको बहुत नूरानी और तेजस्वी समझ रहे हैं, एक ओर भारत है तो दूसरी ओर इण्डिया है, भारत ओ है जो अपने साथ अजनाभवर्ष, आर्यावर्त, जम्मूद्वीप, अल्हिन्द, हिमवर्ष, भारतखण्ड और हिन्दुस्तान लिये हुये है वहीं दूसरी ओर इण्डिया है जिसे 26 राजनीतिक दलों के साथ देखा जा रहा है वैसे तो कई सदियों से अधिकारिक रूप से इण्डिया को भारत ही समझा जाता रहा है किन्तु वर्तमान में सियासी चैसर पर लगातार पिछले कुछ वर्षों से ऐसे पांसे फेंके जा रहे थे कि चौसर के धुरन्धर सकुनियों ने अपने- अपने पांसे फेंक कर आज देश को ऐसी स्थिति में ले आये हैं जहां पर एक देश के दो नाम को आमने सामने लाकर खड़ा कर दिया है। एक ओर सत्ता पर आरूढ़ दल है तो दूसरी ओर सत्ता पर आरूढ़ होने के लिये 26 रथों पर सवार सारथी हैं, दोनों ही दल अपने-अपने फेंके गये पांसे को अचूक दांव मान रहें हैं, बस भरी सभा में फर्क इतना है कि एक दल भारत को भारत बताने वा दिखाने के लिये ताबड़तोड़ फैंसले ले रहा है तो दूसरा दल भी फैंसला लेने की क्षमता को तरास रहा है। देश की चौसर पर लगातर फेंके जा रहे पांसे पर पांसे को पूरा देश देख रहा है और सोंच रहा कि आखिरी दांव किसका होगा और किस के पछ में होगा ? इस शह और मात के खेल में भारत बाजी मारेगा या इण्डिया बाजी मारेगा इसका फैसला अभी वक्त के गर्भ में ही पल रहा है। लेकिन भारत और इण्डिया के बीच आज जो गहरी खांई खोद दी गयी है अब देखना यह कि कब कैसे और किस प्रकार से भरेगी।
आज हमारा देश एक बार फिर एक नये आन्दोलन की ओर धीरे धीरे अग्रसर हो रहा है बस फर्क ये है कि बीते काल खण्ड के सभी देशवासी फिरंगियों की गुलामी और उनके अत्याचार से आजिज होकर एक क्रान्तिकारी रूख एख्तियार किया था न जाने कितनों की जिन्दगी क्रान्ति की ज्वाला में जलकर राख हो गयी, न जाने अपना देश कितनी बार लूटा गया, न जाने अपने देश की बेशकीमती धरोहरों को कितनी बार नष्ट किया गया, विदेशियों द्वारा देश में व्यापार का लालच देकर देशवासियों को गुलाम बनाया गया सोंने की चिड़िया के नाम से विख्यात अपना देश एक बार राजनीति में बुरी तरह से फंस चुका है सत्ता की कुर्सी हांसिल करने के लिये अपने ही देश के लोग अपने ही देश में ऐसे लड़ रहें हैं मानों एक दूसरें को फिरंगी नजर आ रहें है चुनाव के दौरान ऐसे ऐसे दांव पैतरे लगाये जाते हैं कि उन पर अगर अमल किया जाये तो आज की शिक्षा और जागरूकता का कोई महत्व नही है चुनाव को जीतने की एक! ऐसी रेस लगी है कि रास्ते में चाहे जो आये चाहे जैसे बस रौंद दो, आज हमारा देश चुनाव की नाव पर सवार भारत और इण्डिया को लेकर लड़ता नजर आ रहा हैं वहीं देशवासी भी अपने- अपने मत का चप्पू चलाने के लिये भी तैयार नजर आ रहे हैं किसके चप्पू की रफ्तार किसको कहां पर ले जाती है ये तो पूरी तरह लहरों पर ही निर्भर करता है।
जब संविधान लिखने से पहले लार्ड मांउटबेटन की मौजूदगी थी और मांउटबेटन की भाषा में ही संविधान लिखा गया तो लार्ड मांउटबेटन के नाम पर भी एक बार प्रकाश डाल लिया जाये, लेखक लैरी कांन्लिस दाॅमिनिक लैपियर द्वारा अंग्रेजी भाषा में एक पुस्तक लिखी गयी थी जिसका नाम है आजादी आधी रात को जिसे बाद में हिन्दी में रूपान्तरित किया गया किताब के पृष्ठ सं0 140 से लेकर 148 तक में बताया गया कि मई 1947 को दिल्ली में वायसराय लार्ड मांउटबेटन की अध्यक्षता में एक बैठक बुलाई गयी थी जिसमें भारत के बटवारे वाले मुद्दे पर चर्चा की जानी थी बटवारा ऐसा था जिसमें स्याही, दवात झाडू, रेल संस्थान, विद्यालय, घोडे, हार्न से लेकर सुई धागे साबुन की बट्टियां भी शामिल थीं 03 जून 1947 को आल इण्डिया रेडियो दिल्ली से लार्ड मांउटबेटन ने प्रसारण जारी किया जिसमें कहा कि भारतीय भू खण्ड को दो भाग में विभाजित करने का समझौता कर लिया गया है उसके बाद फिर नेहरू हिन्दी भाषा में बोले कि समझौता हो गया इसे सभी लोग शान्ती पूर्वक स्वीकार कर लें। उसके बाद 4 जून 1947 को महात्मा गांधी इस विभाजन को रोकने के लिये वायसराय लार्ड मांउटबेटन से चर्चा करने के लिये पहुंचे जहां पर महात्मा गांधी ने कहा आप हमारा देश छोंड कर चले जाओ विभाजन अपने आप खत्म हो जायेगा। उसके बाद वायसराय लार्ड मांउटबेटन ने एक पत्रकार सभा का अयोजन किया सभा के अंतिम दौर में एक भारतीय पत्रकार ने वायसराय से सवाल पूंछा सर जैसाकि आपने कहा कि प्रशासनिक शक्तियों की अदलाबदली जल्द होनी चाहिए तो क्या कोई तारीख आपने सोंच रखी है ? जिस पर वायसराय ने कहा हां! तो पत्रकार ने तारीख जानने का प्रयास किया ? अचानक वायसराय के मन में एक खास तारीख उभर कर आ गयी जिसका नाम था 15 अगस्त 1947 लार्ड माउण्टबेटन ने भारतीय आजादी की तारीख की घोषणा आनन फानन में कर दी पूरी दुनियां में तहलका मच गया। आजादी की तारीख सुनकर ओ भारतीय ज्योतिषी बौखला गये जिसकी समझ असीम और शक्ति अटल मानी जाती थी देश भर के ज्योतिषियों ने एक स्वर में कहा कि यह तारीख भारत के लिये ठीक नही है इसे बदल दिया जाये जहां इतने दिनों तक भारतीयों ने गुलामी झेली है एक दिन और झेल लेगा किन्तु 15 अगस्त के दिन भारत को आजाद न किया जाय नही तो देश में सब कुछ उलट पलट जायेगा देश की कोई शक्ति अपने केन्द्र पर नही रह सकेगी। असम के ज्योतिषी मदनानन्द को जैसे ही आजादी की तारीख पता चली वैसे ही ओ चिल्ला उठे और कहा नही यह अनर्थ है जिस पर मदनानन्द ने लार्ड माउण्टबेटन को एक पत्र लिखा और कहा कि सभी भारतीयों पर दया करो और 15 अगस्त की तारीख बदलने का अनुरोध किया और बताया कि यह तारीख भारत के लिये अभिशप्त है यदि इस दिन भारत को आजाद किया गया तो भारत में बाढ, सूखा, अकाल, खून खराबा, बटवारा, जैसी स्थिति उत्पन्न हो जायेगी फिर भी लार्ड माउण्टबेटन ने किसी की एक भी नही सुनी इस प्रकार जून में ही 15 अगस्त 1947 यानि देश को आजाद करनें की तारीख का ऐलान कर दिया था।
— राजकुमार तिवारी (राज)