कविता

अहिंसा

जब बात अहिंसा की आती हैतो बापू की छवि सामने आ जाती है,बापू की दुहाई दी जाती हैबेसुरे राग में बापू के सिद्धांतों की कथा सुनाई जाती है,अपने हिंसात्मक प्रवृत्ति परगांधी चादर ओढ़ाई जाती है।अच्छा है कि बापू का नाम लीजिएउनका सम्मान, उनके विचारों को मान दीजिए।पर पहले अपनी हिंसात्मक प्रवृत्ति कोसिरे से लगाम तो लगा लीजिए।अहिंसा की बातें करने, बापू की आड़ में अहिंसा को बदनाम करने सेसुबह से शाम तक हिंसा को बढ़ावा देनेहिंसा पर हिंसा करते हुएअहिंसा के लंबरदार बनने सेअहिंसा का प्रचार नहीं होता,ऐसी ही अहिंसा का शिकार आजजाने कितना बेगुनाह बनताअहिंसा की भेंट चढ़कर बापू की अहिंसा नीति प्रचार करता,हिंसा की पृष्ठभूमि में भीबापू का ही नाम रटताक्योंकि आज तो बसअहिंसा का ‘अ’ छोड़कर गुणगान करता,केवल हिंसा हिंसा का जाप करता,बस अहिंसा का खोखला दंभ भरताखुद को सबसे बड़ा गाँधीवादी बनता।

*सुधीर श्रीवास्तव

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