लम्बी कहानी ‘रखैली’ – भाग 5
(4)
सज्जाद की नवेली
कहकशां ने सारिका को देखते ही मुस्कराकर उसे गुड मार्निग बोला और उसके लिए चाय ले आई। सारिका चाय लेकर इधर – उधर नजर घुमाने लगी तो कहकशां हँसते हुए एक ओर इशारा करते हुए बोली जो भाभीजान भाईजान मेरा मतलब आपके होने वाले शौहर को ढूंढ रही हैं तो “वो” उधर रहे।’
सारिका ने उस ओर देखा जिधर कहकशां ने इशारा किया था तो सज्जाद एक आरामकुर्सी पर बैठे अखबार पढ़ रहे थे।
‘एक कप चाय और मिल सकती है क्या ?’ सारिका ने कहकशां से पूछा।
‘जी बिलकुल अभी लेकर हाजिर होती हूँ।’
कहकशां जाकर एक कप चाय ले आई। सारिका एक ट्रे में दोनों कप रखकर सज्जाद के करीब गई। आहट से सज्जाद ने सर उठाकर देखा तो सारिका चाय लिए खड़ी थी।
‘अरे आप। आओ बैठो और देखो तो अखबार में क्या छपा है ?’
सारिका ने पहले सज्जाद को चाय का कप दिया फिर पास में पड़ी कुर्सी पर बैठते हुए धड़कते दिल से अखबार उठा लिया। जैसा कि पिछले कई दिनों से उसके बारे में उल्टा सीधा छापा जा रहा था इसलिए उसे किसी बुरी बात का ही अंदेशा था।
पर ये क्या…
जैसे जैसे सारिका खबर पढ़ती गई उसकी आँखे हैरत से और चेहरा ख़ुशी से लबरेज़ होता गया।
मीडिया ने सारिका की तारीफ के पुल बांधे थे। उसकी खूबसूरती के कसीदे गढ़े थे। उसके विचारों को क्रांति की मशाल बताया था। पाकिस्तान आकर उसके शादी करने के फैसले को अमन और एकता की शुरआत बताया गया था।’
सारिका ने पढ़ा और फिर सज्जाद को देखा।
सज्जाद उसकी मनोदशा समझ चुका था। सारिका के हाथ से अखबार लेकर उसे चाय का कप देते हुए बोला ‘मैने कहा था न कि जमीं के अगर एक टुकड़े के लोग आपसे नफरत करते हैं तो दूसरे टुकड़े के लोगो के दिलो में आपके लिए बेपनाह मुहब्बत है।’
‘आपका और आपके मुल्क के लोगो का शुक्रिया।’ सारिका ने सज्जाद से कहा तो वह बोला ‘मोहतरमा अब ये मुल्क और ये खाकसार दोनों आपके हैं।’
सारिका ने आँखों से सज्जाद का शुक्रिया अदा करते हुए चाय का एक घूंट भरा तभी उसकी कानो में कहकशां का स्वर सुनाई पड़ा ‘पंडित जी आ गए हैं अम्मीजान।’
‘पंडित जी ?’ इस अप्रत्यशित बात को सुनकर सारिका होठों में बुदबुदाई और जिज्ञासा से आवाज़ के जानिब देखा तो एक पंडित वहां पर मौजूद था जिनके बैठने का प्रबंध कहकशां कर रही थी।
सारिका ने सज्जाद से पूछा ‘सज्जाद जी ये पंडित जी यहाँ ?’
‘मोहतरमा आपको तो पता ही है कि पाकिस्तान में भी हिन्दू रहते हैं वो भी बड़ी खुशहाली से। तो उनकी शादी ये पंडित जी लोग ही करवाते हैं।’
‘सज्जाद जी वो ठीक है पर ये पंडित जी यहाँ ?’
‘अरे सारिका जी ये पंडित जी यहाँ शादी का मुहर्त निकालने आये है।’
‘शादी का मुहर्त… पर किसकी ?’
आपकी, मतलब हमारी शादी का मुहर्त।’
सज्जाद की बात सुनकर सारिका को शाक लगा था। बेयक़ीनी में उसने पूछा ‘हमारी शादी एक पंडित से ?’
‘हाँ अम्मीजान ने यही डिसाइड किया है। उनका कहना है कि अब जबकि उनकी होने वाली बहु हिन्दू मजहब से ताल्लुक रखती है तो उसका सम्मान करते हुए ये उसकी शादी पूरी तरह हिन्दू रस्मो के मुताबिक होगी।’
‘पर आप तो मुस्लिम है ?’ सारिका ने सज्जाद के हाथ से खाली कप लेते हुए पूछा।
‘मैने कब इंकार किया।’
‘तो ये शादी आपकी भी है जनाब और जब हिन्दू रीती से मेरी शादी होगी मतलब आपकी भी होगी।’
सारिका का हाथ अपने हाथ में लेकर सज्जाद बोला ‘सारिका माई स्वीट हार्ट अब जबकि आप मेरे लिए सब छोड़कर आ गई हो तो क्या मैं आपके लिए इतना भी नहीं कर सकता।’
सारिका ने सज्जाद की बात सुनी उसकी अम्मी के विचार जाने और वह उनके प्रति श्रद्धा से भर गई।
चाय के खाली कप ट्रे में रखकर सारिका उठते हुए बोली ‘सज्जाद जी एक काम और कर सकते हैं आप मेरे लिए ?’
‘जी बोलिये मैडम जी।’
‘अब आप मुझे “आप” नहीं “तुम” कहकर बुलाया करे।’
सज्जाद ने सारिका को मस्त निगाहों से देखते हुए कहा ‘जो हुक्म सरकार का।’
सज्जाद के कहने के अंदाज़ से सारिका मुस्कराई और ट्रे लिए हुए नीची नज़रों से पंडित जी और बेगम नादिरा को बात करते देखते हुए भीतर की ओर चली गई।
शुभ मुहर्त में पंडित जी ने मंत्रोच्चार के साथ सारिका और सज्जाद के फेरे करवाए।
बेगम नादिरा ने ढेरों तैयारियां करवाई थी शादी के लिए। बहुत सी मशहूर हस्तियां शामिल हुई इस शादी में। कई पत्रकारों ने इस शादी को कवर किया।
सारिका अपने भाग्य पे इतरा उठी। उसे इतने सम्मान और प्यार की उम्मीद ही नहीं थी।
उसने ख्वाबो तक में नहीं सोचा था कि उसकी शादी एक इस्लामिक देश में एक मुस्लिम शख्स से हिन्दू रस्मो के अनुसार होगी। कई मशहूर और नामचीन लोग शादी में मौजूद रहकर मुबारकबाद देंगे। हालाँकि सारिका इन मशहूर लोगो से परिचित नहीं थी, उन्हें जानती नहीं थी पर वे सब सज्जाद और बेगम नादिरा के जानने वाले लोग थे।
आखिर वो घडी भी आ पहुंची जिसका इन्तजार हर लड़की करती है।
सारिका तम्मनाओ से लबरेज़ होकर सुहागसेज पर बैठी थी।
सज्जाद उसके शौहर बन चुके थे और वो आज तन – मन से उनके इंतज़ार कर रही थी।
एक आहट हुई तो उसे लगा सज्जाद जी आ गए। उसने लाज से लाल हो रही आँखों को उठाकर देखा तो कहकशां आपा और भाभीजान थीं।
वो दोनों बहुत देर तक सज्जाद का नाम लेकर सारिका से चुहलबाजी करती रहीं। सारिका आज उन्हें कोई जवाब नहीं दे रही थी। उनकी बात पर बस हलके – हलके मुस्करा देती, ह्या से नजरे झुका लेती।
कहकशां एक मिठाई का डब्बा साथ लाई थी। उसमे से एक टुकड़ा निकाल कर अपने हाथो से सारिका को खिलाते हुए बोली ‘भाभीजान आप भी थोड़ी मिठाई सज्जाद की नवेली को को खिला दो फिर हम यहाँ से निकलते हैं। सज्जाद भाईजान आने वाले होंगे और उसके बाद हमारा यहाँ कोई काम न होगा।‘
कहकशाँ की बात सुनकर हँसते हुए भाभीजान ने भी एक पीस स्वीट का सारिका को खिलाया और फिर वो दोनों सारिका को शबे अवल्ली की मुबारकबाद देते हुए कमरे से हँसते हुए चली गई।
सारिका अपने घुटनो पर सर रखकर सज्जाद का इंतज़ार करने लगी।
क्रमशा :
–सुधीर मौर्य