कहानी

लम्बी कहानी ‘रखैली’ – भाग 6

(5)

सज्जाद की रखैली

मुर्गे की बांग के साथ सारिका की आँख खुली।

उसने बिस्तर पर नजरे घुमाई सज्जाद वहां नहीं थे। वो उससे पहले ही उठकर चले गए थे। सारिका को ये सोचकर ग्लानि हुई कि उसका शौहर उससे पहले उठे और वह सोती रही। 

बिस्तर के बाद उसने अपने कपड़ो पर नजर डाली तो उसकी देह पर कोई कपडा न था। उसे बिस्तर के एक कोने अपने कपड़ो का छोटा सा ढ़ेर दिखाई दिया।

कपडे पहनते हुए सारिका रात का वाक्या याद करने की कोशिश करने लगी पर उसे केवल उतना ही याद आ रहा था जब कहकशां और भाभीजान उसे मिठाई खिलाकर हँसते हुए कमरे से चली गई और वो अपने घुटनो पर सर रखकर सज्जाद जी का इंतज़ार करने लगी।

पर उससे आगे का सारिका को कुछ भी याद नहीं आ रहा था। कब सज्जाद जी कमरे में आये। कब सुहागसेज पर चढ़े। कब उन्होंने उसे कपड़ों से मुक्त किया। कब शबे अवल्ली की शुरआत हुई। कब उसके शौहर ने उसके जिस्म को हासिल किया।

सारिका ने बहुत कोशिश की पर उसे कुछ याद भी नहीं आया।

सारिका इस बात को लेकर चिंतित थी कि वो रात को अपने शौहर से अदब से पेश तो आयी न। हालाँकि सज्जाद ने इससे पहले भी सारिका का जिस्म हासिल किया था और तब सारिका ने समर्पित लड़की की तरह ही व्यवहार किया था पर आज उसकी सुहागरात थी। आज उसे कुछ ज्यादा ही अपने व्यवहार को लचीला और पति के माफिक रखना था।

पर उसे कुछ याद नहीं था।

उसने कोई खता तो नहीं की जिसकी वजह से सज्जाद जी नाराज होकर कमरे से जल्दी चले गए – यह सोचते हुए सारिका कमरे से बाहर निकली।

कमरे से बाहर निकल कर कुछ देर सारिका को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ। क्या ये वही हवेली है जिसमे वो सज्जाद के साथ आई थी और कल बड़े धूमधाम के साथ उसकी शादी सज्जाद के साथ हुई थी।

कुछ देर में सारिका को समझ आया हवेली तो वही थी पर उसमे इस वक्त दिखने वाले लोग बैगाने थे। बस एक शख्स को सारिका की आंखे पहचान पाई।

वो मौलाना था। जिसने अभी कुछ दिन पहले हवेली में उसे और सज्जाद को ढेरों दुआए थी।

हवेली के बदले मंजर की सारिका अभी थाह ले ही रही थी कि मौलाना ने उसे देख लिया।

‘अरे बेगम साहिबा उठा गई। हो गई सुबह तुम्हारी ?’ मौलाना अपनी जगह पर बैठे हुए बोला तो सारिका को ये बिलकुल भी अंदाज़ा नहीं था कि मौलाना उससे मुखातिब है।

सारिका को लगा मौलाना किसी और से कह रहा होगा और उस ने मौलाना की बात पर तवज्जो न देते हुए हवेली में मौजूद औरतों में बेगम नादिरा, कहकशां और भाभी को ढूंढने की कोशिश करने लगी।

वो तीनो उसे दिखाई भी दी पर उनके कपडे जो कल तक बेहद कीमती हुए करते थे आज मामूली और कुछ जगह से फ़टे हुए थे।

बेगम नादिरा के पास सारिका भाग के गई और उनका हाथ पकड़ के उसने पूछा ‘अम्मीजान आपके ये कपडे ? और फिर इधर – उधर नज़ारे घुमाकर वो सज्जाद के बारे में पूछने लगी।

नादिरा सारिका से अपना हाथ छुड़ा कर हवेली की फर्श में बिना कुछ बोले झाड़ू लगाने लगी।

सारिका ने कहकशां और भाभी से बारी – बारी उनकी इस हालत और सज्जाद के बारे में पूछा पर वे दोनों भी ख़ामोशी से अपने – अपने काम में लगी रहीं।

‘रुखसाना।’ मौलाना की कड़कती हुई आवाज़ हवेली में गुंजी जिसे सुनकर सारिका की आँखे उस पर जा टिकी।

एक लहीम – शहीम ऊंचे डील – डौल की बलिष्ठ औरत मौलाना के सामने सर झुककर बोली ‘जी क्या हुक्म है मौलाना साहेब ?’

‘मेरी इस नई – नवेली रखैल को जरा तमीज सिखाई जाए।’

मौलाना ने सारिका की ओर ऊँगली तान के रुखसाना से कहा तो सारिका की आँखे बेयक़ीनी में फट गई। उसे ऐसा लगा जैसे आसमान अपनी जगह छोड़कर उसके सर पर आके गिर पड़ा हो। 

‘व्हाट डू यू मीन रखैल ?’ और कोई मुझे ये बताता क्यों नहीं कि सज्जाद जी कहाँ है ?’ सारिका की आवाज़ इस समय गुस्से से कांप रही थी।

‘इस हवेली में कनीजो और बंदियों को तेज आवाज़ में बोलने की इजाजत नहीं और न ही उन्हें कोई सवाल करने का हक़ है।’ रुखसाना सारिका की और देखकर बोली।

‘कनीज… बांदी… ये तूं क्या बक रही है ज़ाहिल औरत मैं सारिका हूँ मशहूर जर्नलिस्ट और अब इस हवेली की इज्जतदार औरत।’

सारिका की बात सुनकर रुखसाना ने एक खम्भे के साथ रखी एक छड़ी उठा ली और आगे बढ़कर उसके वार सारिका पर करते हुए बोली ‘बदबख्त जुबान लडती है।’

सारिका अपनी हो रही इस पिटाई से साकित हो गई थी। छड़ी के मार उसके पूरे शरीर पर पड़ रही थी। वो दर्द से चिल्लाते – रोते हुए हवेली के पूरे सहन में बचने के लिए भाग रही थी। रुखसाना उसे दौड़ा – दौड़ा कर पीट रही थी।

सारिका ने नादिरा, कहकशां और भाभी से खुद को बचाने की गुहार लगाई पर वे उसकी बात अनसुना करके अपने – अपने काम में लगी रही।

‘सज्जाद जी आप कहाँ हैं, प्लीज़ आकर हमें बचाइए इस राक्षसी औरत से।’

सारिका चिल्लाई तो मौलाना ने रुखसाना को रुकने का हुक्म देकर सज्जाद को आवाज़ दी।

सज्जाद हाथ में कुछ अखबार लिए हुए आया तो सारिका भाग कर उसके करीब पहुंची। वो सज्जाद के शरीर को छू पाती उससे पहले ही रुखसाना ने उसे पकड़ करा कहा ‘बदबख्त लौंडी अपने मालिक के सामने ही गैर मर्द को छूने की कोशिश कर रही है। साथ ही उसने सारिका के गाल पर एक ताकतवर थप्पड़ भी जड़ दिया। सारिका दर्द और अपमान से तिलमिला उठी।

अख़बार मौलाना को देते हुए सज्जाद बोला ‘मौलाना साहब सभी अखबारों में इस शादी की ऐसी खबर छपी है कि पूरी दुनिया हमारी वाहवाही कर रही है। जल्द ही हनीमून का प्रोपेगेंडा भी फैला दिया जायेगा। कुछ महीनो में लोग इस वाक्यात को भूल जायँगे। मैं भी जर्नलिस्ट का काम छोड़कर आपका फार्महाउस संभालता हूँ। इससे कुछ दिन लोगो की नजर में आने से बचा रहूँगा।’

सारिका सुन रही थी और उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसका दिमाग और दिल दोनों ही सुन्न पड़ते जा रहे है।

मौलाना ने कहा ‘ठीक है सज्जाद मियां अब तुम जाओ और हाँ जाते – जाते दो मिनट में इस औरत को असलियत से वाकिफ करवाते जाओ।’

सज्जाद ने सारिका को देखा तो वो दीदा फाड़े उसे ही देख रही थी।

‘सारिका बीबी ! मौलाना साहब का उसी दिन आप पे दिल आ गया था जब आप पाकिस्तान में आकर अपने फैमिनज्म की तकरीर दे रही थी। उन्होंने आपको देखा और आपको अपनी रखैली बनाने का फैसला कर लिया। मौलाना साहब बहुत बड़े आदमी है उनका फैसला पत्थर की लकीर होता है। उन्होंने मुझे इस काम को करने के लिए कहा और मैने इसमें कामयाबी पाई। ये सब हमारी शादी ये सब दुनिया को दिखने के लिए कि आप बेहद खुश और आजाद हैं। बेगम नादिरा, कहकशां और भाभीजान ये सब भी मौलाना साहब की रखैल ही है। इनसे यही रिश्ता है और कुछ नहीं। रात को मौलाना साहब ने ही आपसे जिस्मानी ताल्लुक बनाये मैने नहीं। इसलिए अब आप उनकी रखैल हो और उनकी बात मानना तुम पर फ़र्ज़ है।’

‘अच्छा अब मैं चलता हूँ जाते – जाते एक बात और ये रुखसाना बेहद ज़ालिम औरत है अभी जो इसने किया वो कुछ भी नहीं है जो ये कर सकती है।’

सज्जाद हवेली से बाहर जा चुका था और सारिका के भीतर इतनी भी ताकत नहीं बची थी कि वह उसे गर्दन मोड़ के देख सके। उसका शरीर सूखे पत्ते की तरह काँप रहा था जब उसके कानो में मौलाना की आवाज़ पड़ी ‘रुखसाना जल्दी करो मुझे अभी इस वक्त इस लौंडी के साथ हमबिस्तरी करनी है।’

रुखसाना सारिका का हाथ पकड़ कर उसे कमरे में ले गई और बिस्तर पे धकेल दिया। सारिका ने बिस्तर से मुँह उठाकर देखा तो मौलाना कमरे में प्रवेश कर रहा था और रुखसाना हाथ में छड़ी लिए हुए उसे देख रही थी।

सारिका ने आँखे बंद कर ली कुछ देर में उसे एहसास हुआ कि उसके लहंगे का जारबन खोलकर उसे नीचे सरका के कोई उसकी जाँघे सहला रहा है। सारिका ने हिम्मत करके हलके से आँखे खोली तो वो मौलाना था।

सारिका ने वापस आंखें बंद कर ली और उसकी आँखों से आंसू की कुछ बुँदे गालों पे ढलक गई।

समाप्त

–सुधीर मौर्य  8980382608

सुधीर मौर्य

नाम - सुधीर मौर्य जन्म - ०१/११/१९७९, कानपुर माता - श्रीमती शकुंतला मौर्य पिता - स्व. श्री राम सेवक मौर्य पत्नी - श्रीमती शीलू मौर्य शिक्षा ------अभियांत्रिकी में डिप्लोमा, इतिहास और दर्शन में स्नातक, प्रबंधन में पोस्ट डिप्लोमा. सम्प्रति------इंजिनियर, और स्वतंत्र लेखन. कृतियाँ------- 1) एक गली कानपुर की (उपन्यास) 2) अमलतास के फूल (उपन्यास) 3) संकटा प्रसाद के किस्से (व्यंग्य उपन्यास) 4) देवलदेवी (ऐतहासिक उपन्यास) 5) मन्नत का तारा (उपन्यास) 6) माई लास्ट अफ़ेयर (उपन्यास) 7) वर्जित (उपन्यास) 8) अरीबा (उपन्यास) 9) स्वीट सिकस्टीन (उपन्यास) 10) पहला शूद्र (पौराणिक उपन्यास) 11) बलि का राज आये (पौराणिक उपन्यास) 12) रावण वध के बाद (पौराणिक उपन्यास) 13) मणिकपाला महासम्मत (आदिकालीन उपन्यास) 14) हम्मीर हठ (ऐतिहासिक उपन्यास ) 15) अधूरे पंख (कहानी संग्रह) 16) कर्ज और अन्य कहानियां (कहानी संग्रह) 17) ऐंजल जिया (कहानी संग्रह) 18) एक बेबाक लडकी (कहानी संग्रह) 19) हो न हो (काव्य संग्रह) 20) पाकिस्तान ट्रबुल्ड माईनरटीज (लेखिका - वींगस, सम्पादन - सुधीर मौर्य) पत्र-पत्रिकायों में प्रकाशन - खुबसूरत अंदाज़, अभिनव प्रयास, सोच विचार, युग्वंशिका, कादम्बनी, बुद्ध्भूमि, अविराम,लोकसत्य, गांडीव, उत्कर्ष मेल, अविराम, जनहित इंडिया, शिवम्, अखिल विश्व पत्रिका, रुबरु दुनिया, विश्वगाथा, सत्य दर्शन, डिफेंडर, झेलम एक्सप्रेस, जय विजय, परिंदे, मृग मरीचिका, प्राची, मुक्ता, शोध दिशा, गृहशोभा आदि में. पुरस्कार - कहानी 'एक बेबाक लड़की की कहानी' के लिए प्रतिलिपि २०१६ कथा उत्सव सम्मान। संपर्क----------------ग्राम और पोस्ट-गंज जलालाबाद, जनपद-उन्नाव, पिन-२०९८६९, उत्तर प्रदेश ईमेल [email protected] blog --------------http://sudheer-maurya.blogspot.com 09619483963