लघु कथा- एक रोटी और-
सुमि रोटी बना रही थी उसने सबको आवाज दी चलो खाना बन गया ।सब टेबिल पर आगये ।लंच का समय था , आज रविवार था सब साथ बैठ कर खा रहे थे । सम्मिलित परिवार की बात ही कुछ और होती है पर बन्दिशे भी होती हैं। सुमि की शादी को कुछ ही समय बीता था । घर में जेठानी ,सास,ननद सभी तो थे ,फिर भी कभी कभी अकेला पन उसे घेर लेता था ।
सब खाना खा चुके थे बह और उसकी जेठानी खाना खाने बैठी ,पर वह अतीत की यादों में खो गयी । उसका स्कूल से दोपहर को घर आना उस समय चूल्हे पर रोटी बनती थी । उसकी भाभी जो उसकी मां की तरह थी उम्र में उससे बहुत बड़ी थी । वह उसका इन्तजार करती थी कि कब मै आऊं और वह गर्म गर्म रोटियां खिलाये । वह भी चूल्हे के पास बैठ कर स्कूल की सारी शैतानियां सुनाते सुनाते खाना खाती थी । उसे तो पता भी लगा कि वह कब बड़ी होगयी आकर भाभी से लिपट कर रोने लगी मां से डर लगता था । भाभी ने बड़े प्यार से समझाया सारी बातें जो आज टीवी के माध्यम से छोटी उम्र की लड़कियां भी जानती हैं पर भटक भी जाती हैं क्योंकि वह मेरी हितेषी और मार्ग दर्शक थी । नियति का खेल देखो उन्हें एक गंभीर बीमारी ने घेर लिया और वह सबको रोता बिलखता छोड़ कर चली गयी पर नहीं गयी तो एक याद । आज 28 साल बाद जब भी मै दोपहर का खाना खाने बैठती हूँ तो सोचती कोई मुझसे कहे ” एक गर्म रोटी और लेलो अरे बहुत छोटी सी बनाई है ” पर कोई कहने वाला नहीं होता ।
— डा.मधु आंधीवाल