ग़जल
पलकों में आँसू छुपा के रखना,
चेहरे पे तुम हँसी सजा के रखना ।
लुढ़कें न कभी आँसू तुम्हारी गालों पर ,
नफरत की आग सदा बुझा के रखना ।
सहज नहीं होता किसी के आँखों में ,
हरदम खुद को बसा के रखना ।
अगर तुम्हें अँधेरे से डर लगे कभी ,
कोई चिराग तुम जला के रखना ।
भूल से कभी न हो घर में भाई विभीषण ,
अपनी लंका को भेदी से बचाये रखना ।
‘ शिव ‘दर्द देने वालों की परवाह न कर,
औरों की खुशियों का थाल सजा रखना ।
— शिवनन्दन सिंह