अरि को नहीं पीठ दिखाते हैं
मेरे देश की हवा में भी शक्ति है,
जगाती देश के प्रति भक्ति है,
अभिनंदन का अभिनंदन करती,
जाँबाज़ वायु-पुत्र की अनुरक्ति है।
तेजस का तेज वे बन जाते हैं,
रफाल-सुखोई से सुध हैं लेते,
उड़ने को तैयार ये वायु-प्रहरी,
सुरक्षा देश को नभ से हैं देते।
ऊंचाइयां छूने की ललक बस,
उनमें देश की खातिर है,
गच्चा दुश्मन को दे सकते,
कितना भले ही शातिर है!
देश ही नहीं, अखिल जगत में,
विजय-पताका फहराते हैं,
दुश्मन सोने नहीं पाता जब,
वायु-पुत्र उठ-उड़ जाते हैं।
निष्कंटक और निर्भय होकर,
प्राणों की बाजी लगाते हैं,
अक्षुण्ण रखते अपनी संस्कृति,
अरि को नहीं पीठ दिखाते हैं।
— लीला तिवानी