कविता

कंठ निराशा का मरोड़ देते हैं

रह जाती हैं मन में कुछ अनकही बातें,
बहुत सताती हैं मन को ये अनकही बातें,
काटे नहीं कटती हैं चैन-सुकून से रातें,
याद आती हैं जब भी ये कुछ अनकही बातें।
कशमकश है किससे कहें, कैसे कहें,
किसी से कह दें या फिर चुप ही रहें!
कहने से फसाना बन जाती हैं ये बातें,
अच्छा है ये अनकही बातें मन में ही रहें!
सफलता जब नहीं मिलती निराशा घेरती है,
हजारों मुश्किलों से जूझती जिंदगी हेरती है,
भटकन होती राहों में पिपासा विकट हो जाती,
अपनों के साथ सारी दुनिया मुंह फेरती है।
पॉजीटिव होना बहुत अच्छा है पर कभी-कभी,
निगेटिव होनी भी वरदान है कोरोना ने समझाया,
सत्य-अहिंसा-न्याय के प्रति पॉजीटिव ही रहिए,
झूठ-हिंसा-अन्याय के प्रति निगेटिव ही मन-भाया।
चलो जिंदगी को एक नया-अनूठा मोड़ देते हैं,
अनकही बातों को बिना कहे ही छोड़ देते हैं,
मन को ही समझाते हैं अवसाद से रहे दूर-दूर,
आशा-दामन थाम, कंठ निराशा का मरोड़ देते हैं।

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244