कविता

गुलाबी ठंडक होती हैं बेटियां

जो घर भगवान को पसंद होता है,
उसी घर में होती हैं बेटियां.
रोशनी हरपल रहती है वहां,
गुलाबी ठंडक होती हैं बेटियां.
जिस घर में मुस्कान बिखेरती हैं बेटियां.
जरूरी नहीं रोशनी चिरागों से ही हो,
घर में उजाला भी करती हैं बेटियां.
बिना पंखों के भी एक दिन उड़ जाती हैं बेटियां,
अपने पिता के लिए परी का रूप होती हैं बेटियां.
बेटियों से आबाद होते हैं घर-परिवार,
वह घर अधूरा होता है, जहां नहीं होती हैं बेटियां.
बाबुल के घर अभाव में पलने पर भी,
स्नेहसिक्त आशीर्वाद देती हैं बेटियां.
उनसे जाकर पूछो कितनी अनमोल होती हैं बेटियां,
जिनके घर नहीं पधारी हैं बेटियां.
थोड़े-से संस्कारों से संस्कारित होकर,
साहस से सराबोर होती-करती हैं बेटियां.
संसार की सृजनहार हैं ये बेटियां,
घर-परिवार-संसार की रौनक होती हैं ये बेटियां.

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244