मुक्तक/दोहा

देख सुनहरी रात

प्रेम रखे हैं जो यहां, उसका है सत्कार 

उसकी प्रतिभा का मिले, देखो ये आधार 

जो आदमी रहे यहां, बनकरके कंजूस 

जीवन भर फिर वो रहे, हरदम ही मायूस 

ऊंचा पद जिसको मिला, करें नहीं वो बात 

अब उसकी होती सदा, देख सुनहरी रात 

आदमी पर रहा नहीं, उस पर अब विश्वास 

एक दूसरे का करता, रमेश देख विनास

युवा पीढ़ी आज यहां, जाती पश्चिम ओर 

संस्कृति को भूलकर ये, करती मोंढा शोर 

गलत काम जिसने किया, हुआ देख बदनाम 

फिर भी वो छोड़े नहीं, करता ऐसे काम 

उतरती है आंगन में, देख मुलायम धूप 

महक उठता तब उसका, देखो रमेश रूप 

लूटने को है आदमी, हरदम ही तैयार 

बना लिया आज उसने, इसको ही आधार 

जिसके भी होते यहां, रमेश कड़वे बोल 

आगे रहकर तू सभी, उसकी परते खोल 

गरीब किससे अब करें, अपनी ही फरियाद 

मांगे जिससे भी मदद, करता वो बरबाद 

— रमेश मनोहरा 

रमेश मनोहरा

शीतला माता गली, जावरा (म.प्र.) जिला रतलाम, पिन - 457226 मो 9479662215