भारत की उन्नत अर्थव्यवस्था एवं विक्रम और बेताल
सुप्रसिद्ध चिकित्सक और ख्यात शल्य चिकित्सक भारतभूषण डॉ. विक्रमादित्य ने रात बारह बजे अपनी अन्तिम शल्य चिकित्सा निपटाई और सदियों से श्मशान के पास छाती तान कर खड़े विशाल वृक्ष पर चढ़कर आनन-फानन में सोए हुए बेताल को अपने कन्धे पे डाला और घने वन की ओर प्रस्थान कर दिया I
विक्रम ने बेताल से कहा सुन बेताल ! मेरे कुछ प्रश्नों के सही-सही उत्तर दें, अन्यथा मैं तेरे शरीर में सोडियम की स्थायी कमी कर दूंगा और फिर तू चाहे नमक खाएगा, रतलामी कचोरी या पापड़-अचार खाएगा या टोल्वाप्टान की गोलियां खाएगा या इन्ट्राविनस सेलाइन भी लगवाएगा तो भी तेरे शरीर की सोडियमजनित भयकारी अशक्तता न तो समाप्त होगी और न ही कम होगी I
बेताल – ठीक है, राजन, जो पूछना हो पूछ लीजिए I
विक्रम –बेताल ! तू तो जानता ही है कि पूर्व प्रधानमंत्री विश्वप्रसिद्ध अर्थशास्त्री श्री मनमोहनसिंह ने केम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पी.एचडी. की और फिर ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय से डी.फिल. किया था I परन्तु भारत के दस वर्ष तक प्रधानमंत्री बने रहने पर भी उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को ठन-ठन गोपाल बना डाला I उन अत्यधिक शिक्षित प्रधानमंत्री ने निर्लज्जता से सार्वजनिक रूप से कहा था कि पैसे पेड़ पर नहीं उगते और उनका धन-धान्य से सम्पन्न देश के प्रधान के रूप में एक और लज्जाजनक सार्वजनिक बयान दिया था कि कुपोषण राष्ट्रीय शर्म है I इसके अतिरिक्त भी कई ऐसे ही सार्वजनिक बयानों के लिए उन्हें आज भी स्मरण किया जाता है, सैनिकों के लिए जूतों के लिए, हथियारों और बारूद के लिए पैसा नहीं है I देश के सभी संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का है I जबकि वर्तमान यशस्वी प्रधानमंत्री, विश्वनेता के रूप में सम्मानित श्री नरेन्द्र मोदी को अनपढ़ या चौथी कक्षा तक पढ़े हुए कहा जाता है और उनके शासन काल में तो पैसों की मानो वर्षा हो रही या यूँ कहूँ कि झड़ी लगी हुई है I मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों की श्रृंखलाएं, आयुष्मान योजना, सड़कों का महाजाल, रेल्वे की उत्कृष्ट और बढ़ती सेवाएँ, अस्सी प्रतिशत लोगों को सुपोषित करने के लिए मुफ्त अनाज, मुद्रा लोन, किसानों के बैंक खातों में सीधे-सीधे पैसों का स्थानान्तरण आदि आदि I
बेताल [टोकते हुए]- क्षमा करें राजन ! मैं भी कुछ बताने से अपने आपको रोक नहीं पा रहा हूँ, मोदीजी कितने दूरदृष्टा हैं, कुछ उदाहरण दूंगा I प्रधानमंत्री बनते ही स्वच्छ भारत अभियान शुरू किया और लाखों अशिक्षितों तथा अल्प शिक्षितों को रोजगार दे दिया, गंदगी से होने वाले मलेरिया और सर्दी-खांसी, अस्थमा, एलर्जी आदि के उपचार में देश के और नागरिकों के जेब से खर्च होने वाले धन को भी बचा लिया I और तो और कचरे से बिजली, खाद आदि भी बनवाना आरम्भ कर दिया मतलब यह कि एके साधे सब सधे I इधर स्टेच्यु ऑफ यूनिटी पर केवल तीन हजार करोड़ रुपयों का निवेश किया और हजारों नहीं लाखों व्यक्तियों को स्थायी रूप से जीविकोपार्जन के संसाधन उपलब्ध करवा दिए I वहां तो ऐसा पर्यटन उद्योग शुरू हुआ है कि भारत ही नहीं अपितु विदेशों से भी अनगिनत पर्यटक हर माह आने लगे हैं I यह किसी बहुत बड़े सफल कारखाने से कम नहीं है I निवेश किए हुए तीन हजार करोड़ रुपए तो कभी के खजाने में आ चुके हैं, इसीतरह आस्था के प्रतीक भगवान श्रीराम का भव्यातिभव्य मन्दिर जब बन कर तैयार हो जाएगा तो कई तरह के उद्योगों को कल्पनातीत गति मिलेगी और लाखों नागरिकों को जीविकोपार्जन भी सहजता से मिल जाएगा I वाराणसी तथा उज्जैन में निर्मित महाकाललोक भी बहुत बड़े-बड़े औद्योगिक संस्थानों से बढ़ कर सिद्ध होने लगे हैं I इस अनुपम दूरदृष्टि ने शिक्षित ही नहीं अनपढ़ युवाओं, प्रौढ़ों, स्त्री-पुरुषों आदि सभी को स्वयं का उद्योग प्रदान कर दिया है I और तो और वे अन्य लोगों को नौकरी देने में सक्षम हो गए हैं I मैं मोदीजी की दूरदृष्टि को नमन करता हूँ I
विक्रम- रुक बेताल ! प्रश्नकर्ता मैं हूँ और चूँकि प्रश्न मोदीजी की अनूठी योग्यता से सम्बन्धित है, इसलिए मुझे ही बताने दें, सड़क-रेल और वायु परिवहन में अभूतपूर्व वृद्धि, घर-घर पानी, गाँव-गाँव बिजली, ऊर्जा के वैकल्पिक उपाय, उज्ज्वला योजना, पक्के आवास योजना और स्वास्थ्य सुविधाओं में कल्पनातीत वृद्धि, इलेक्ट्रॉनिक वाहन, कथित रूप से मुस्लिम विरोधी का कलंक धारण करते हुए भी मुस्लिमों के विकास में कोई पक्षपात नहीं करते हुए चुपचाप और निरंतर “सबका साथ सबका विकास” में यह व्यक्ति चौबीसों घण्टें लगा रहता है I भारतीय सेना को इतना समृद्ध कर दिया है कि विश्वास ही नहीं होता, कोविड के समय देश के सभी नागरिकों को मुफ्त वैक्सीन और अभी चन्द्रमा पर भारतीय ध्वजा का आरोहण भी अविश्वसनीय और दिवास्वप्न लगता है और तो क्या बताऊँ तू तो सब जानता ही है I
बेताल- राजन ! मेरा बेटा बता रहा था कि अच्छी सड़कों के कारण उसके और उसके मित्रों-परिचितों के वाहनों का रखरखाव बहुत कम हो गया है, पढ़ाई करने के लिए अधिक समय मिलने लगा है, वाहनों का माइलेज बढ़ गया है I चार-चार लेन सड़कों के कारण दुर्घटनाएं कम हो गई हैं I तेज गति की रेलों के कारण नौकरी करने वाले लोगों का समय बचने से वे अधिक समय तक परिवार, मित्र और समाज में समरस होने लगे हैं, जिसके कारण तनावों से होने वाले रोग कम हुए हैं I राजन ! मोदीजी कितने विजनरी हैं, बताता हूँ, उन्होंने योग को अन्तरराष्ट्रीय रूप से स्थापित कर न केवल भारत के नागरिकों को रोगों से बचाने की दिशा में पहल की है अपितु वसुधैव कुटुम्बकम् के मन्त्र की सिद्धि करते हुए विदेशियों को भी स्वास्थ्य के दिव्य मन्त्र दे डालें हैं I इसके अतिरिक्त देश-विदेश में लाखों योगकेन्द्र खुलने से योग के विद्यार्थियों को भी जीविकोपार्जन के साधन उपलब्ध हो गए हैं I भारत के योगाचार्यों को व्याख्यान आदि के लिए बुलवाया जाने लगा है I
विक्रम- टोकते हुए बेताल ! तूने अन्तरराष्ट्रीयता की बात की तो अनायास ही उनके द्वारा वैश्विक रूप से पारम्परिक चिकित्सा की पुनर्स्थापना के लिए किए जा रहे अनथक प्रयास याद आ गए हैं I इन प्रयासों ने भी सिद्ध कर दिया है कि वे भारत के स्थायीभाव वसुधैव कुटुम्बकम् और सर्वे भवन्तु सुखिनः पर अटूट विश्वास करते हैं I हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं कि यदि सभी देशों में उनकी अपनी देशज पारम्परिक चिकित्सा स्थापित और सुप्रचलित हो गई तो फार्मास्यूटिकल उद्योगों की जेब में अनावश्यक रूप से जा रहा खरबों डॉलर का धन बचेगा और उन देशों की अर्थ व्यवस्था को अत्यधिक सशक्त बना डालेगा I
बेताल- राजन ! आपका कथन पूर्णतया सत्य है I
विक्रम–बेताल ! अब मुझे यह बता कि महान अर्थशास्त्री श्री मनमोहनसिंह और श्री नरेन्द्र मोदीजी की शिक्षा में धरती-आकाश का अन्तर होते हुए भी मोदीजी आखिर कैसे इतने कुशल प्रशासक अर्थशास्त्री और दूरदृष्टा के रूप में उभरे हैं और विश्व के श्रेष्ठतम नेताओं में से एक सिद्ध हो रहे हैं I क्या वर्तमान की शैक्षिक उपाधियों की गुणवत्ता प्रश्नवाचक और संशयात्मक हो चुकी हैं?
बेताल ठहाके मार-मार कर जोर-जोर से हंसने लगा, रात के नीरव वातावरण में बेताल की भयानक अट्टहास को सुनकर शेर जैसे हिंसक पशुओं सहित सभी पशु- पक्षी जाग कर इधर-उधर भागने लगे I वह देर तक हँसता रहा I
विक्रम ने तलवार खींचीं और आक्रमण की मुद्रा में आ गया और बेताल के शरीर के सोडियम सन्तुलन को नष्ट करने वाला इंजेक्शन भी हाथ में ले लिया और बोला – बेताल ! इसमें हंसने की क्या बात है?
बेताल- राजन ! यह पुस्तकीय ज्ञान के आधार पर उपाधियाँ देने वाली वर्तमान शिक्षा का कमाल है, काश ! गुरुकुल शिक्षा होती I एक उदाहरण से अपनी बात स्पष्ट करता हूँ I मेडिकल कॉलेजों में जो विद्यार्थी कठिन स्नातक प्रवेश परीक्षा के उपरान्त प्रवेश पाते हैं, वे विद्यार्थी 99 पर्सेंटाइल तक अंक लाने वाले अत्यन्त प्रतिभाशाली और परिश्रमी होते हैं I साढ़े पांच वर्षों की कठोर साधना के साथ-साथ दर्जनों छोटी-छोटी परीक्षाओं में सफल होते हैं I लगभग 82 अतिशिक्षित और अत्यधिक अनुभवी परीक्षक उनके 21 विषयों के सैद्धांतिक और व्यावहारिक ज्ञान का चार मुख्य परीक्षाओं में मूल्यांकन कर, उन्हें 50 से 85 प्रतिशत अंक प्रदान करते हैं I परन्तु वे ही प्रतिभाशाली विद्यार्थी जब नीट की स्नातकोत्तर प्रवेश परीक्षा में, उन्हीं 21 विषयों से सम्बन्धित प्रश्नों का उत्तर देते हैं तो उन्हें शून्य से भी कम अंक प्राप्त होते हैं और राजन ! दुर्गति की पराकाष्ठा यह है कि शून्य से चालीस अंक तक कम अंक लाकर भी स्नातकोत्तर अध्ययन के लिए योग्य मान लिए जाते हैं, यह चिकित्सा शिक्षा जैसी मानव जीवन से जुड़ी शिक्षा की दुर्दशा का चरमोत्कर्ष है, I
विक्रम- बेताल ! जानता हूँ, तेरा बेटा चिकित्सा शिक्षा की दुर्दशा का शिकार हुआ है, तू भावना में मत बह I चिन्तित होने की आवश्यकता नहीं है, मोदीजी ने नई शिक्षा नीति लागू की है, उसके सुपरिणाम निकलने में थोड़ा समय अवश्य लगेगा परन्तु स्थितियों में बहुत बड़े परिवर्तन होंगे I तू तो शिक्षा से सम्बन्धित मेरे प्रश्न का सटीक उत्तर दें I
गहरी सांस लेकर बेताल –राजन ! भारत के मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में किसी की शिक्षा के विषय में जब बड़े-बूढ़े पूछते हैं तो उनका प्रश्न होता है कि कहाँ तक भण्यो-गुण्यो है? इसका अर्थ है, भारत में पढ़ाई के साथ-साथ ज्ञान व्यक्ति के दैनन्दिन आचरण में समाहित हो जाया करता था, गुण्यो का अर्थ है, अर्जित ज्ञान का आचरण में आ जाना I तो पैसे पेड़ पर नहीं उगते कहकर अर्थशास्त्री श्री मनमोहनजी ने सिद्ध कर दिया कि वे गुण्यो की श्रेणी में नहीं आते हैं I उन्होंने विदेशी डिग्रियां अवश्य अर्जित की है, परन्तु भारत की गुरुकुल की शिक्षा अतुलनीय रही है I जहां तक आदरणीय मोदीजी की शिक्षा का प्रश्न है, तो आप कबीरदासजी की शिक्षा से उनकी शिक्षा की तुलना कर सकते हैं, वे औपचारिक शिक्षा की दृष्टि से निरक्षर थे, परन्तु उनके द्वारा रचित साखियों [दोहों] पर हजारों विद्यार्थी पीएचडी कर चुके हैं और मैं यह सगर्व भविष्यवाणी करता हूँ कि मोदीजी पर विश्वभर के हजारों विद्यार्थी शोध करेंगे I राजन ! मैं तो मोदीजी से अधिक पढ़े-लिखे भारतीयों को आव्हान करना चाहता हूँ कि वे अपनी शिक्षा के अनुरूप पराक्रम कर देश का नाम उज्ज्वल करें I
विक्रम – बेताल ! मैं तेरे चातुर्य से प्रसन्न हूँ और तुझे तीन माह के लिए मुक्त करता हूँ I
बेताल –राजन ! रुको, मैं एक मिनट में आता हूँ I इतना कहकर बेताल आकाश मार्ग की ओर उड़ गया और लौटकर आया और कहने लगा, सुनो राजन ! मोदीजी के आने वाले कुछ प्रकल्पों को बताता हूँ, वे प्रमुख मन्दिरों की आय से देश की हर तहसील में एक-एक सुविशाल गौशालाएं खोलेंगे, ताकि खेती आत्मनिर्भर हो जाए, रासायनिक खादों और कीटनाशकों से कृषकों को मुक्ति मिल जाए और गोबर गैस से चूल्हे और बिजली प्रज्ज्वलित हो सकें साथ ही नागरिकों को निरोगिता और शक्ति देने वाले ए-2 दूध, घी, मक्खन आदि उपलब्ध होने लगे I एक और प्रकल्प यह है कि वे ऐसे घरों के निर्माण की योजना पर चिन्तन कर रहे हैं, जिनमें सीमेंट आदि का उपयोग नहीं होगा, तथा वे वातानुकूलित होंगे, पर्यावरण मित्र होंगे, हवा और सूर्यप्रकाश की पर्याप्त उपलब्धता रहेगी और वे भूकम्प, तूफान आदि के उपरान्त भी बचे रहेंगे I तीसरा प्रकल्प यह है कि रोगकारी फास्टफूड, कोल्डड्रिंक से किशोरों, तरुणों और युवाओं को बचाने के लिए सभी स्तर के शिक्षण संस्थानों के स्वल्पाहारगृहों [केन्टीन्स] में गुड़-चने, सत्तू, पंजेरी, खोपरा-मिश्री, खाकरें, सुपर फूड अलसी, सहजन की पत्तियों का चूर्ण, ताजा छाछ, ताजी लस्सी, नारियल पानी, नीम्बू पानी, शहद पानी, ताजा गन्ने का रस, बेलफल का रस, कोकम, गौंद की राब, शरबत, ताजा आमरस, सौंफ की शरबत आदि प्राकृतिक, सात्विक, पौष्टिक फास्टफूड एकोफ्रेंडली पैकिंग में उपलब्ध होने लगेंगे I
विक्रम- बेताल ! ये बातें तू किस आधार पर कह रहा है और तू एक मिनट के लिए कहाँ गया था?
बेताल- राजन ! आपकी बातों से उत्साहित होकर मैं मोदीजी के मस्तिष्क में कुछ क्षणों के लिए घुसा था, क्योंकि इससे अधिक समय तक किसी योगी व्यक्ति के मस्तिष्क में घुसकर उसकी योजनाओं को जानना असम्भव होता है I
विक्रम- बेताल ! तूने तो कमाल कर दिया है, मैं तुझे छह माह के लिए मुक्त करता हूँ I
विक्रम के ये वाक्य सुनते ही बेताल प्रसन्न होकर उड़न छू हो गया I
— डॉ. मनोहर भण्डारी