पाप पुण्य
पाप का महिमा मंडन, आजकल होने लगा,
झूठ का बोलबाला, तकिया लगा सोने लगा।
घर के कोने मुँह छिपा, पुण्य सिसक रहा कहीं,
सत्य भी छिपा हुआ, जब तम घना होने लगा।
रावण की तारीफ़ में, क़सीदे विद्वान पढ़ने लगे,
वैज्ञानिक और विद्वान, नये आयाम गढ़ने लगे।
सीता सुरक्षित लंका में, रावण चरित्रवान था,
रावण की नैतिकता का, परचम ले बढने लगे।
रावण का प्रयास था, सीता को रानी बनाना,
अशोक वाटिका में, नित कोई कहानी सुनाना।
जब भी चाहा सीता को छूना, हाथ जलने लगे,
मजबूरी थी रावण की, चरित्रवान उसको बताना।
राम चरित्र मर्यादा का, प्रश्न उस पर उठाने लगे,
महिला विरोधी राम थे, आलोचक समझाने लगे।
चरित्र पर सीता के शंका, क्यों अग्नि परीक्षा ली,
सीता को त्यागने पर, पुरूष प्रधान जताने लगे।
— डॉ अ. कीर्तिवर्द्धन