लघुकथा

माँ का प्रतिरूप 

   छोटी दिवाली की रात  वह  माँ के ख्यालों में ही भटकती रही थी ।  उसे वे दिन याद आने लगे जब ससुराल से वह मायके जाती तो माँ उसके लिए सूजी-मैदा की मठरी जरूर बनाती। जैसे ही कढ़ाई में वह छोड़ती, बच्ची की तरह मचलती आन बैठती—‘माँ-माँ, मैं तो गरम-गरम खाऊँगी । मुझे ठंडी अच्छी नहीं लगती।’ 

    “तू भी निराली है। गरम फुल्का तो सबको खाते देखा है, पर गरम मठरी खाते तुझे ही देखा है।” उसे माँ की झिड़की बड़ी प्यारी लगती।

     गाजर का हलुआ तो माँ उसके पहुँचने से पहले ही बनाकर रख देती । अपने हिस्से का कटोरी भर गाजर का हलुआ खाने के बाद उसकी नीयत न भरती और ताक में रहती—कब दुबारा कहूँ। तभी तो माँ  जब खाने के बाद आवाज लगाती—‘मुनिया, जरा हलुआ तो मुझे देजा।’ वह कटोरदान खोलते ही दो  चम्मच तो भसक ही लेती। कुप्पा गाल देख माँ बस हँस जाती। न डांट न फटकार। 

अगले दिन बड़ी दीवाली थी । सो वह बड़ा-सा थाल सजाकर भाई के घर हाजिर हो गई जो माँ के साथ कुछ मील दूरी पर ही रहता था। 

   लाड़ली बहन हो देख भाई चहक उठा, “अरे सुम्मी, इतने बड़े थाल में क्या भर लाई?”

   “कुछ न पूछ भाई, कल सारे दिन पकवान-मिठाई बनाने में लगी रही।“ 

   “पर इतना सब क्यों?” 

   “कुछ तेरी पसंद के बनाए हैं।  कुछ माँ की पसंद  के पकवान बनाती रही।  यही सोचकर कि माँ  मुझे बनाकर नहीं खिला सकती तो क्या हुआ, अब मैं माँ को अपने हाथों से बनाकर खिलाऊंगी।”

   “तब चल माँ के कमरे में, उसी के सामने इस पर जड़ा चमचमाता पेपर हटाना। एक मिनट को तो माँ भी हैरत में पड़ जाएगी–ओए मेरी बेटी इतनी होशियार हो गई है!”

    “माँ-माँ, देखो सुम्मी तुम्हारे लिए क्या-क्या लाई है?’’

   “मेरे लिए… मुझ बूढ़ी माँ के लिए…न खा सकूँ, न हजम कर सकूँ!” 

    “उफ माँ, मेरे कहने से पहले ही उल्टी-सीधी बातें सोचने लगीं । देखो तो, क्या-क्या लाई हूँ?” 

    “गाजर का हलुआ! बड़ी खुशबू आ रही है।” पोपले गाल खुशी के फूल उठे। 

   “मठरी भी बनाई हैं। बहुत भुरभुरी हैं। खाने में कोई तकलीफ नहीं होगी। मैदा के साथ सूजी भी डाली है। माँ, ठीक तुम्हारी तरह!”

    “अच्छा ला, एक चम्मच हलुआ चखा दे। एक मठरी भी दे दे ।” 

    मुँह में हलुआ घूमते-घुमाते माँ उसका आनन्द लेने लगी । 

    बेटी के सिर पर हाथ फेरते हुए बोली –“तू तो बड़ी होशियार हो गई है “

“ठीक तुम्हारे नक़्शेक़दम  पर चल रही है माँ । चलो, इसी बहाने मुझे भी हलुआ-मठरी खाने को मिलता रहेगा –।” 

“बेटा, तू क्या जाने!  बेटियाँ माँ का प्रतिरूप ही होती हैं।” 

— सुधा भार्गव

सुधा भार्गव

जन्म -स्थल -अनूपशहर ,जिला –बुलंदशहर (यू .पी .) शिक्षा --बी ,ए.बी टी (अलीगढ़ ,उरई) प्रौढ़ शिक्षा में विशेष योग्यता ,रेकी हीलर। हिन्दी की विशेष परीक्षाएँ भी उत्तीर्ण की। शिक्षण --बिरला हाई स्कूल कलकत्ता में २२ वर्षों तक हिन्दी भाषा का शिक्षण कार्य |किया शिक्षण काल में समस्यात्मक बच्चों के संपर्क में रहकर उनकी भावात्मक ,शिक्षात्मक उलझनें दूर करने का प्रयास रहा । सेमिनार व वर्कशॉप के द्वारा सुझाव देकर मुश्किलों का हल निकाला । सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अंतर्गत बच्चों की अभिनय काला को निखारा । समय व विषय के अनुसार एकांकी नाटक लिखकर उनके मंचन का प्रयास हुआ । संस्थाएं --दिल्ली -ऋचा लेखिका संघ ,हिन्दी साहित्य सम्मेलन तथा साहित्यिकी (कलकत्ता ) से जुड़ाव । दिल्ली आकाशवाणी रेडियो स्टेशन में बालविभाग व महिला विभाग के जुड़ाव के समय बालकहानियाँ व कविताओं का प्रसारण हुआ । देश विदेश का भ्रमण –राजस्थान ,बंगाल ,दक्षिण भारत ,उत्तरी भारत के अनेक स्थलों के अतिरिक्त सैर हुई –कनाडा ,अमेरिका ,लंदन ,यूरोप ,सिंगापुर ,मलेशिया ,नेपाल आदि –आदि । साहित्य सृजन --- विभिन्न विधाओं पर रचना संसार-कहानी .लघुकथा ,यात्रा संस्मरण .कविता कहानी ,बाल साहित्य आदि । साहित्य संबन्धी संकलनों में तथा पत्रिकाओं में रचना प्रकाशन विशेषकर अहल्या (हैदराबाद)।अनुराग (लखनऊ )साहित्यिकी (कलकत्ता )नन्दन (दिल्ली ) अंतर्जाल पत्रिकाएँ –द्वीप लहरी ,हिन्दी चेतना ,प्रवासी पत्रिका ,लघुकथा डॉट कॉम आदि में सक्रियता । प्रकाशित पुस्तकें— रोशनी की तलाश में --काव्य संग्रह इसमें गीत ,समसामयिक कविताओं ,व्यंग कविताओं का समावेश है ।नारीमंथन संबंधी काव्य भी अछूता नहीं। बालकथा पुस्तकें---कहानियाँ मनोरंजक होने के साथ -साथ प्रेरक स्रोत हैं। चरित्र निर्माण की कसौटी पर खरी उतरती हुई ये बच्चों को अच्छा नागरिक बनाने में सहायक होंगी ऐसा विशवास है । १ अंगूठा चूस २ अहंकारी राजा ३ जितनी चादर उतने पैर 4-मन की रानी छतरी में पानी 5-चाँद सा महल सम्मानित कृति--रोशनी की तलाश में(कविता संग्रह ) सम्मान --डा .कमला रत्नम सम्मान , राष्ट्रीय शिखर साहित्य सम्मान पुरस्कार --राष्ट्र निर्माता पुरस्कार (प. बंगाल -१९९६) वर्तमान लेखन का स्वरूप -- बाल साहित्य, लोककथाएँ, लघुकथाएँ लघुकथा संग्रह प्रकाशन हेतु प्रेस में