सिर उठा कर जीने का नाम ज़िन्दगी
ज़िन्दगी हर समय आपसे बात करती है
कहती है सच्चाई कभी नहीं डरती है
झुक झुक कर जिये तो क्या जिये
सिर उठाकर जिया जो उसी पर मरती है
कोई खुशी से जीता है कोई दुखों को झेल रहा
पाई पाई को तरसता कोई कोई करोड़ों से खेल रहा
तपता है कड़ी धूप में सुबह से शाम कोई
खुद करता बेईमानी दूसरों को उपदेश पेल रहा
ज़िन्दगी भी कई बार कर देती है तमाशा
निराशा में जब बदल जाती है आशा
परेशान हो जाता है मेहनत करने वाला
झलकती है उसके चेहरे से हताशा
कठिनाइयों में भी जिसने हिम्मत है दिखाई
आगे बढ़ा जो नहीं डगमगाया जीत उसी ने पाई
पैरों में पड़े छालों का दर्द जिसने मज़बूती से सहा
उसी के हिस्से में कामयाबी है आई
— रवींद्र कुमार शर्मा