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नुक्कड़ नाटक – पर्यावरण संरक्षण

15 नुक्कड़ नाट्यकर्मी
एक स्थानीय निवासी
एक पागल
एक छोटी बस्ती का विद्वान
एक गुजराती
एक दक्षिण भारतीय
एक सरदार अथवा पंजाबी
एक पहाड़ी
शेष आठ सामान्य नागरिक
वेशभूषा :उपरोक्तानुसार

(सभी गोल बनाकर नाचते गाते हुए)
” हवा गर्म है, आओ चलो कहीं भाग चले ….
हवा गर्म है, आओ चलो कहीं भाग चले…..”

सामान्य नागरिक में से

पहला- “गर्मी! कितनी उमस है, सांस तक लेना दूभर है। “

दूसरा : “मेरा तो सर ही घूम रहा है चक्कर घिन्नी हो गया हूंँ मैं । “

तीसरा: ” प्यास ! प्यास! अरे , कोई पानी पिला दो प्यास से मर जाऊंगा मैं। “

चौथा: “इस तेज धूप में मेरे तो प्राण ही निकलने वाले हैं । “

पाँचवाँ : “कहीं कोई पेड़ दिखे तो छाया मिले, शुद्ध ताजी हवा मिले । पर ,यहां तो…….दूर-दूर तक ऊँची – ऊँची अटारियों के सिवा कुछ नजर नहीं आता। “

पागल : (बीच में कूदते हुए ) “काटो – काटो ! और पेड़ काटो ! सब पेड़ काट डालो ! सुंदर-सुंदर फर्नीचर बनाओ , बंगले बनाकर दरवाजे बनाओ । धरती को वृक्ष विहीन कर दो।
काटो , सालों काटो और काटो ।”

सभी घेरे में पुनः

” हवा गर्म है ,आओ चलो कहीं भाग चले ।
हवा गर्म है । आओ चलो कहीं भाग चले। “

छठवां – ” अरे भैया , भाग कर ही तो आए हैं हम, अपने गाँव से । पैदावार हुई नहीं । बैंक का कर्ज, ऊपर से । कमाने आए थे शहर से रुपया। यहाँ तो, गर्मी के मारे हाल बेहाल है। किराए का रिक्शा। किराया दूं या बच्चों का पेट पालूँ ? लथपथ, पसीने से तरबतर, सारा दिन रिक्शा खींचता हूंँ, पर कुछ नहीं बचता । सपने लेकर आया था । एक आधा साल में अपना रिक्शा ले लूँगा, मोटर लगवाऊंगा, पर गर्मी रोटी तक भी कमाने नहीं देती। “

पागल: ” फिर भी नहीं मानते ! वहां देखो! उधर क्या हो रहा है? नेताजी का पुतला जला रहे हैं ! टायर जला रहे हैं! गाडियाँ फूँक रहे हैं ! फूँको -फूँको, नेताजी को! हम सबको! पूरे देश को फूँक दो, फूँक दो। “

गुजराती भाई : “अरे मोटा भाई, मेरे सूरत में बाढ़ आया। प्लेग फैला, तो मैं घबरा कर इधर रहने वास्ते आया । पर दिन पर दिन ताप बढ़ते ही जाता है।”

सामान्य व्यक्ति : ” अरे भाई, गुजरात छोड़कर यहाँ आने का क्या काम था? गुजरात को तो लोग स्वर्ग बताते हैं, स्वर्ग!”

गुजराती : “पैसा तो है भाई गुजरात में। पन ये हालात की मार तो गुजरात भी खाता है ना भाई। लक्खा लोग मर गए प्लेग में । पहले मैं सोचा, द्वारका चले जाऊंगा पन, उधर भी समद्दर, जब रंग दिखाता तो किसी की खैर नहीं होती । “

साउथ इंडियन : “अरे इस समुद्र का रंग देखना हो तो हमारे चेन्नई में देखो । कितनी तो गाड़ी की गाड़ी सड़क से आकर ले जाए, बिल्डिंग की बिल्डिंग गायब हो जाती है । “

सामान्य आदमी : “पर भाई समुद्र को इतना गुस्सा क्यों आता है ? हम इंसानों से इतनी नाराजगी क्यों है? शायद राम भगवान के समय से सागर महाराज नाराज हैं भैया । “

विद्वान: ” अरे भैया, नाराजगी की बात नहीं ग्लोबल वार्मिंग इफ़ेक्ट यानी भूमध्य के उष्मीकरण प्रभाव के कारण समुद्र का जल स्तर निरंतर बढ़ रहा है। फैक्ट्री, कारखाने का गंदा पानी, कचरा समुद्र में डालते समय हम नहीं सोचते । समुद्री वनस्पति और जीव इनकी चपेट में आकर नष्ट हो रहे हैं । खारे जल के कारण वनस्पति , शाक भाजी का उत्पादन तो वहाँ है ही नहीं। ऊपर से मछलियाँ और अन्य जीव जंतु भी नहीं बचेंगे तो मनुष्य क्या खाकर जिएगा ? समुद्री तूफान आते हैं और आएंगे भी । गाज़ा, फानी कैटरीना जैसे बड़े-बड़े समुद्री तूफान हर साल आते हैं और हम सब जान पर खेलते हैं पर सबक नहीं लेते हैं, सुधरते नहीं, प्रयास भी नहीं करते -समुद्र और नदियों को साफ रखने का । “

पागल : हाँ हाँ, जो स्काई लैब गिरा तो समुद्र में! पिछले साल पूरा का पूरा पानी का जहाज डूब गया लोगों के साथ, वह भी समुद्र में। रिसता डीजल, तेल। जहाज चलाते जाओ समुद्र में। मार दो ! मार दो! एक भी मछली बचने ना पाए। शार्क, व्हेल, डॉल्फिन सब को खत्म कर दो । भागो भागो! समुद्री तूफान आने वाला है। “

सभी लोग गाते हुए (गोले में)

“साइक्लोन से दूर, कहीं चलो भाग चले।
तूफानों से दूर चलो कहीं भाग चले
हवा गर्म है आओ चलो कहीं भाग चले। “

सामान्य आदमी : ” अरे भैया ! पूछो मत , मेरा बेटा बैंगलोर में एक आईटी कंपनी में मैनेजर है। उस शहर में पीने का पानी ही नहीं है । नामी- गिरामी कंपनियाँ इंजीनियरों को नियुक्ति दे रही हैं। पर , काम, ‘वर्क फ्रॉम होम’ यानी घर पर करके दो, वो भी डेढ़ गुना। पानी , लाइट की अपनी बचत के खातिर वर्क फ्रॉम होम घर से काम का नया तरीका ढूंढ निकाला है । “

सामान्य व्यक्ति: ” अरे भाई ! साफ पानी पीने के लिए है ही कहाँ? चेन्नई, बेंगलुरु , मुंबई जैसे समुद्री शहरों की बात छोड़िए। कुआँ, बावड़ी, तालाब तो अपने भी सूख चुके हैं। नदियाँ गर्मियों में सिमट कर पतली नालियों जैसी बहती हैं । औद्योगिक प्रदूषण के कारण और गर्मी में वाष्पीकरण के कारण बदबूदार पानी पीते हैं हम सब यहाँ पर ।”

पागल : ” सीवर का पानी! फैक्ट्री का मैला ! डालो डालो ! जमुना में डालो! गंगा में डालो ! कर दो मैली गंगा ! राम तेरी गंगा मैली हो गई ….राम तेरी गंगा मैली हो गई….गाओ, जोर से गाओ। राग मल्हार में गाओ….राम तेरी गंगा मैली हो गई …..।”

(सभी लोग गोला बनाकर गाते हैं )

“पानी गंदा है ,आओ चलो कहीं भाग चलें।
हवा गर्म है आओ चलो कहीं भाग चलें। “

सामान्य व्यक्ति : ” हवा तो भैया पहाड़ों की अच्छी बताते हैं ।”

पहाड़ी व्यक्ति : “अरे भैया, हम तो केदारनाथ के रहने वाले पक्के पहाड़ी हैं। पानी अच्छा । हवा भी साफ पर सर्द । इंसान ने तो पहाड़ी इलाकों को भी नहीं छोड़ा। सैलानियों ने बर्बाद कर दिए हमारे पहाड़ । धड़ धड़ करती गाड़ियों में आते हैं, डीजल पेट्रोल का गंदा और गर्म धुआँ हमारी बर्फीली और सर्द हवाओं में मिल कर जम जाते हैं । इंसानी मशीनों के आगे पहाड़ के पहाड़ दरकते जाते हैं। इंसान भी कहाँ बच पाता है ? न जाने कितने लोगों ने जान गंवाई है आज तक।”

विद्वान : ” यह सब जमीन की प्लाटॉनिक परतों से छेड़छाड़ के कारण , यानी अति खनन का परिणाम है। “

पागल : “तोड़ो- तोड़ो ! सारे पहाड़ तोड़ दो ! शिमला गया था ना, पूछा- अरे भाई ,क्यों करा रहे हो धरती का सीना चाक ? पता चला, नेता जी का बंगला बना रहा है यहाँ। सबसे सुंदर पहाड़ काट दिया शिमला का।
तोड़ो तोड़ो ! पहाड़ों को दरकाओ ,चटकाओ! “

(सभी गोल बनाकर गाते हुए )

“पहाड़ दरकते, आओ चलो कहीं भाग चले
हवा गर्म है ,आओ चलो कहीं भाग चले । “

सामान्य व्यक्ति : “भैया पंजाब में पाँच – पाँच नदियां हैं । बढ़िया मौसम, उत्तम खेती , गेहूँ, गाय- भैंस का मीठा दूध। चलो सब मिलकर पंजाब चलते हैं । “

पहाड़ी : “हां भैया ! पंजाब तो बहुत बढ़िया है ।”

सरदार /पंजाबी व्यक्ति:
” अरे भाई , हरियाणा पंजाब की पराली जलती है तो उसकी धुंध दिल्ली आगरा की फ़िज़ा भी खराब करती है। पंजाब की हवा का तो हाल मत पूछो । केमिकल वाली खाद ने जमीन को जहरीला बना दिया है। कैंसर के मरीज देखे हैं भाई पंजाब में । भटिंडा से कैंसर रोगियों से भरी कैंसर ट्रेन इलाज के लिए राजस्थान के बीकानेर तक जाती है । पंजाब का हाल भी बेहाल ही है। “

पागल : “मरो ! सब मरो! बीमार होकर मरो ! खाद से मरो ! जहरीले खाने से मरो! हम सब किसी को नजर नहीं आए चल दरिया में कूद जाए। “

विद्वान: “नहीं भाई, नहीं। यह मरने का नहीं , कुछ करने का वक्त है। यह पौधे लगाने का वक्त है। पेड़ लगाने का वक्त है । पानी बचाने का वक्त है। ऑर्गेनिक खेती करने का वक्त है । वायु को प्रदूषण से बचाने का वक्त है ।”

सभी ( एक स्वर में)

हम भले बने
प्रकृति से जुड़े
केमिकलों से बचें
वायु प्रदूषण हटाएँ।।
हम ऐसे काम करें
पानी साफ रखें
रेन हार्वेस्टिंग करें
वन संरक्षण से जुड़े
धरती को बचाएं।।

भारत के प्यारे नागरिको आओ शपथ लें , शपथ लें सभी पर्यावरण संरक्षण में प्रत्येक व्यक्ति अपना अधिकतम योगदान दें।

— बृज बाला दौलतानी