शरद ऋतु
सूरज की मद्धिम चाल,
गज जैसी मदमाती सी।
हल्की सी धूप की चादर
तन पर लहराती सी।।
सरसों के फूल फूले,
खेत छाए पीत रंग।
गुलाब की खेती से,
उपवन में नई उमंग ।
शीतल हवा चली,
तन मन झकझोर गई।
सुरभि आकर अंतस् में ,
हौले से कूक गई।।
— बृजबाला दौलतानी
सूरज की मद्धिम चाल,
गज जैसी मदमाती सी।
हल्की सी धूप की चादर
तन पर लहराती सी।।
सरसों के फूल फूले,
खेत छाए पीत रंग।
गुलाब की खेती से,
उपवन में नई उमंग ।
शीतल हवा चली,
तन मन झकझोर गई।
सुरभि आकर अंतस् में ,
हौले से कूक गई।।
— बृजबाला दौलतानी