अगर तुम न होते
चले पुरवैया है मेघ घुमड़ के हरित सिंचित भूतल लाए।
चेतन जीव शून्य होता,अगर तुम न होते कौन जल लाए।
अनुपम सौंदर्य ,प्रकृति लुभावन ,हर्षित सुमन इठलाता।
अगर तुम न होते न रचना होती कौन धरा सुंदर सजाए।
यह रिश्ते ,संस्कृति संस्कार मानव,दानव न जग में होता।
तुम न होते न जीवन होता रवि चांद तारे कौन चमकाए।
मात पिता ,भाई बहन सखा, जीवन भर के पावन रिश्ते,
तुम न होते जग की रचना न होती कौन यहाॅं आए जाए।
हे इश्वर तेरी लीला निराली रखते हो हर कर्म का लेखा,
तुम न होते तेरा भान न होता धर्म अधर्म कौन समझाए।
रोजी रोटी तुम देते हो हर जीव को दाना पानी मिलता,
रहता पत्थर अंदर जीव जो कौन उस को अन्न खिलाए।
नभचर जलचर थलचर की सुंदर जीवों से सृष्टि निराली,
तुम न होते अंडज,जेरज,सेतज,उत्भुज कृति कौन रचाए।
— शिव सन्याल