गीतिका/ग़ज़ल

अगर तुम न होते 

चले पुरवैया है मेघ घुमड़ के हरित सिंचित भूतल लाए।

चेतन जीव शून्य होता,अगर तुम न होते कौन जल लाए।

अनुपम सौंदर्य ,प्रकृति लुभावन ,हर्षित सुमन इठलाता।

अगर तुम न होते न रचना होती कौन  धरा सुंदर सजाए।

यह रिश्ते ,संस्कृति संस्कार मानव,दानव न जग में होता।

तुम न होते न जीवन होता रवि चांद तारे कौन चमकाए।

मात पिता ,भाई बहन सखा, जीवन भर के पावन रिश्ते,

तुम न होते जग की रचना न होती कौन यहाॅं आए जाए।

हे  इश्वर तेरी लीला निराली  रखते हो हर कर्म का लेखा,

तुम न होते तेरा भान न होता धर्म अधर्म कौन समझाए।

रोजी रोटी  तुम देते हो हर जीव को दाना पानी‌ मिलता,

रहता पत्थर अंदर जीव जो‌ कौन उस को अन्न खिलाए।

नभचर जलचर थलचर की सुंदर जीवों से सृष्टि निराली,

तुम न होते अंडज,जेरज,सेतज,उत्भुज कृति कौन‌ रचाए।

— शिव सन्याल

शिव सन्याल

नाम :- शिव सन्याल (शिव राज सन्याल) जन्म तिथि:- 2/4/1956 माता का नाम :-श्रीमती वीरो देवी पिता का नाम:- श्री राम पाल सन्याल स्थान:- राम निवास मकड़ाहन डा.मकड़ाहन तह.ज्वाली जिला कांगड़ा (हि.प्र) 176023 शिक्षा:- इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लोक निर्माण विभाग में सेवाएं दे कर सहायक अभियन्ता के पद से रिटायर्ड। प्रस्तुति:- दो काव्य संग्रह प्रकाशित 1) मन तरंग 2)बोल राम राम रे . 3)बज़्म-ए-हिन्द सांझा काव्य संग्रह संपादक आदरणीय निर्मेश त्यागी जी प्रकाशक वर्तमान अंकुर बी-92 सेक्टर-6-नोएडा।हिन्दी और पहाड़ी में अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। Email:. [email protected] M.no. 9418063995