कविता

एक दीप प्रेम का 

सुन सखे  इस निलय में,

एक दीप प्रेम का जलाओ, 

बाती की भांति जलूं अब, 

बनकर शलभ तुम आ जाओ| 

निमीलित मृण्मय नयन में, 

हे मदन कुछ क्षण है संचित,

पार्श्व  में तेरे यूं जाकर, 

तन बदन होगा ना सुरभित| 

तेरे वक्ष वलय में प्रियवर, 

मेरा जो निलय आरक्षित, 

एक दीप प्रेम का जला  , 

रोम रोम अब करो  प्रकशित|

— सविता सिंह मीरा 

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - [email protected]