कविता इमारतें *ब्रजेश गुप्ता 18/11/2023 वह इमारतें जिन्हें बनवाया गया था बड़े चाव से अब वीरान सी खड़ी है मुद्दतों से जाने वालों के इंतज़ार में शायद जाने वाले फिर एक बार आएंगे लौटकर और हंसी और खिलखिलाहट से गूंजेगी यह इमारतें फिर एक बार