गीतिका
हम हैं नादान हमको बताते रहे
मात देकर नसीहत सिखाते रहे
जीतते वो रहे,बाजियां चाल से
जश्न भी जीत का वो मनाते रहे
भानु तो बन सकेगें नही वो कभी
दीप बन, पर सदा जगमगाते रहे
वो दुखाता रहा दिल,उन्हे प्यार था
इस लिए नाज उसके उठाते रहे
बेड़िया पैर में ड़ाल कर, उड़़ कहा
नोंच पर, आंसमा को दिखाते रहे
पेड़ पर फल लगा झुक गया बोझ से
फल हमेशा तने को झुकाते रहे
नाव जीवन की वो हौंसलो से चला
आंधियों का कहर आजमाते रहे
उनको बुजदिल नही तुम कहो दोस्तो
कुछ थी मजबूरियां सिर झुकाते रहे
बेवजह सिर कटाना नही ठीक था
होशियारी से दुश्मन हटाते रहे
— शालिनी शर्मा