सपा के एजेंडाधारी स्वामी प्रसाद
उम्र के करीब सत्तरवें पड़ाव पर पहुँच कर स्वामी प्रसाद ने अपनी आस्था बयान की है. उन्होंने कहा कि वह दिपावली पर अपनी पत्नी का पूजन करते हैं. अभी तक वह अपने को बौद्ध कहते थे. वैसे पत्नी पूजन उनकी व्यक्तिगत आस्था है. इस पर कोई आपत्ति नहीं हो सकती. यदि वह यही संदेश देकर रुक जाते तो इसपर चर्चा की भी कोई आवश्यकता नहीं थी. लेकिन सपा में पहुँच कर वह हिन्दू अस्था पर प्रहार का एजेंडा चला रहे हैं. इसी क्रम में उन्होंने देवी लक्ष्मी पर अमर्यादित टिप्पणी की है. वह जानते हैं कि हिन्दू उदारवादी हैं. सहिष्णु हैं. इसलिए हिन्दू धर्म पर हमला बोलकर अपने को राजनीति में चर्चित रखा जा सकता है. स्वामी प्रसाद यही कर रहा है. अन्य मजहब पर बोलने के खतरे उसे मालूम है. इसलिए उसका पूरा ज्ञान हिन्दुओं के लिए रहता है. अच्छा यह है कि इस नेता की कोई विश्वसनीयता नहीं रहा गई है. पार्टी के अनुरूप इनके रंग बदलते हैं. बसपा में थे तो मायावती को एक हांथ से पुष्प गुच्छ देते थे, दूसरे हांथ से उनका चरणा स्पर्श करते थे. भाजपा में पहुँचे तो साँस्कृतिक राष्ट्रवाद के तत्व इनमें समाहित हो गए. इन दोनों दलों की यात्राओं के समय उनके निशाने पर सपा हुआ करती थी. बसपा में रहते हुए ये मुलायम सिंह यादव पर अमर्यादित टिप्पणी करते रहे. अच्छा है कि सपा के वर्तमान मुखिया उन बातों को याद नहीं करना चाहते. वैसे अखिलेश यादव को भी प्रदेश का सर्वाधिक विफल मुख्यमंत्री बताया गया था. आज सपा के राष्ट्रीय महासचिव हैं
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा है कि स्वामी प्रसाद मौर्य मानसिक रुप से दिवालिया हो गए हैं।रामायण के अपमान पर चुप रहे समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव की माता महालक्ष्मी के अपमान पर भी चुप्पी ये साबित करती है कि सपा प्रमुख ने ही स्वामी प्रसाद मौर्य को पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाकर उन्हें सनातन हिन्दू धर्म के अपमान का एजेंडा सौंप रखा है। भी साबित हो गया है कि सपा प्रमुख का खुद को हिंदू बताना, विष्णु जी और परशुराम जी का मंदिर बनवाने की घोषणा और अपने पूजा पाठ का प्रचार कराना सब ढोंग है। अपनी तुष्टिकरण की राजनीति के कारण सपा प्रमुख हिंदू धर्म का अपमान कराने से बाज नहीं आने वाले। स्वामी प्रसाद मौर्य तो मानसिक रुप से दिवालिया हो गए हैं। उनके बयानों में सपा प्रमुख अखिलेश यादव की ही सोच है। सपा प्रमुख हिंदू धर्म और देवी देवताओं को अपमानित कराना बंद करें।’
वैसे यह देखना दिलचस्प है कि हिंदू अस्था की निंदा कर कौन रहा है। वह तेज आवाज में अपनी बात रखने में माहिर हैं। बयान वीरों की श्रेणी में हैं। बिल्कुल विपरीत धाराओं के राजनीतिक खेमों में अपने को खपा लेते हैं। लेकिन इस बार मौसम का मिजाज समझने में विफल रहे। विधानसभा चुनाव हारे तो विधान परिषद में भेजे गए। रामचरित मानस पर विवादित बयान दिया। कृति के पन्ने जलाए। कुछ ही दिन में राष्ट्रीय महासचिव बना दिए गए। ऐसे लोगों के लिए विचारधारा वस्त्रों की भांति होती है, जिन्हें कभी भी बदला जा सकता है। इस प्रकार के नेताओं के किस रूप और किस बयान पर विश्वास किया जाए।
भगवान बुद्ध ने कहा था कि किसी को मानसिक पीड़ा देना भी हिंसा होती है। सपा के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य अपने को बौद्ध कहते हैं। लेकिन वह लगातर बौद्ध दर्शन का उल्लंघन कर रहे हैं। उनके बयानों से हिन्दुओं को मानसिक पीड़ा पहुँच रही है। बौद्ध चिंतन के अनुसार उनका यह आचरण हिंसा की परिधि में है। पहले रामचरितमानस की एक चौपाइ का उन्होंने गलत अर्थ बता कर अस्था पर प्रहार किया था। लेकिन उन्होंने इस पर मुँह की खाई थी। लेकिन बेहयाई ऐसी की कोई सबक नहीं लिया। कुछ समय पहले इसी नेता ने कहा था कि हिन्दू धर्म नहीं धोखा है। ऐसा कह कर उन्होंने संविधान की भावना पर प्रहार किया। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 में हिन्दू शब्द का उल्लेख है। जैन,सिख, बौद्ध धर्मावलंबी को हिंदू परिभाषित किया गया है। स्वामी प्रसाद ने हिन्दू को धोखा बताया। उनके बयान का निहितार्थ यह हुआ कि संविधान में धोखा का उल्लेख है। इसी प्रकार डॉ आंबेडकर ने हिन्दू कोड बिल पेश किया था। स्वामी प्रसाद के अनुसार तो इसे भी धोखा समझना होगा।
बसपा और भाजपा में मंत्री बन कर सत्ता सुख भोगने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य अब सपा में हैं। जिस पार्टी में रहे उसको छोड़ कर शेष दो पार्टियों को नागनाथ सांपनाथ बताते रहे। अपने को नेवला बताने में उन्हें गर्व होता रहा।लेकिन इस राजनीतिक यात्रा में उन्होंने अपने को पूरी तरह अविश्वसनीय बना लिया है। इसीलिए उनके बयान भी उन्हीं की तरह अविश्वसनीय हैं।
उनके राजनीतिक जीवन का अधिकांश हिस्सा सपा पर हमला बोलते ही बीता है। सपा संस्थापक से लेकर आज का नेतृत्व तक उनके निशाने पर रहता था। करीब डेढ़ वर्ष पहले तक उनका यही अंदाज हुआ करता था। उन्होंने अखिलेश यादव को सर्वाधिक विफल मुख्यमंत्री बताया था। योगी सरकार में मंत्री रहते हुए स्वामी प्रसाद साँस्कृतिक राष्ट्रवाद के समर्थक थे। अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर मन्दिर निर्माण शिलान्यास के समय भी वह मंत्री थे। एक बार भी विचलित नहीं हुए। विधानसभा चुनाव अधिसूचना जारी होने के बाद उन्हें गजब ज्ञान की प्राप्ति हुई। जिस सरकार में पांच साल तक सत्ता सुख भोग रहे थे, उसी को दलित पिछड़ा विरोधी बता दिया। जिस पार्टी को नागनाथ कहते थे,उसी में पहुँच गए थे.
रामचरित मानस पर असत्य टिप्पणी के बाद उन्हें सपा का राष्ट्रीय महासचिव बना कर पुरस्कृत किया गया था। तब से वह बेअंदाज हैं। अब तो ऐसा लगता है कि वह अब सपा में रहकर अपना पुराना हिसाब चुकता कर रहे है।
— डॉ दिलीप अग्निहोत्री