गज़ल
जो लोग झूठ से दोस्ती निभाते हैं
वे ही यारों हरेक सुविधा पाते हैं
पहले तो आगे बढ़कर करें मित्रता
फिर पीठ पीछे वे खंजर चलाते हैं
वे अपराधी है आदतन फिर भी उसे
हरदम क़ानून उसको ही बचाते हैं
छिपा लेते हैं वे सारे ऐब अपने
जब वे लिफाफे उन तक पहुॅंचाते हैं
जिसे मच्छर मारना भी आता नहीं
उस पर ख़ून का इल्ज़ाम लगाते हैं
रहा नहीं शरीफों का ज़माना अब तो
इसलिए जो शरीफ है उसे ही सताते हैं
बेटी के ब्याह हेतु लेते है उधार
तब कहीं जाकर वे दहेज जुटाते हैं
फैलाते जो नफरतें दिलों में ‘रमेश’
वे गीता को कुरआन से लड़ाते हैं
— रमेश मनोहरा