कविता

दर्द

तेरे विरह का दर्द अनहदों तक देखा है मैंने,

 कांटों भरे पथ पर पैरों में चुभन को सहा है मैंने। 

तेरी वफ़ा की आस में वर्षों गुज़रते देखें हैं मैंने, 

पर तेरी आदत गई नहीं कितना वक्त बर्बाद किया है तूने ।।

सिमटते हुए देखा है उन लम्हों की आड़ में खुद को मैंने,

गिले सिकवे सिकायतों की बरसात देखी है मैंने। 

पतझड़ की साख को टहनियों से गिरते देखा है मैंने, 

पर किया नहीं अहसास कभी बसन्त की कलियों का तूने ।।

— सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ

सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ

स्नातकोत्तर (हिन्दी)