प्रिये तुम्हें कितना याद किया है!
ध्यान में तुम, ख्याल में तुम,
साधना सा तन्मय हुआ हूं।
जग की इन बाधाओं से मैं
किंचित भी न भयभीत हुआ हूं।
प्रिये तुम्हारी याद में,
मैं मग्न कितना चिर हुआ हूं।
मैने अपने हृदय में स्थान दिया,
तुम्हे सम्मान दिया।
मैं तुम्हारे ध्यान में,मग्न हुआ हूँ,
भग्न हुआ हूँ।
पर किंचित भी न भयभीत हुआ हूं।
मौन और एकांत में,
तप साधना सा रत हुआ हूं।
अवसाद और वेदना में
मैं रोशनी का एक दीया हूं।
उन उजालों को ढूंढने में,
अंधेरों से लड़ा हूं।
जीवन के उन सुख-दु:खों में,
मैं आशाओं का फूल खिला हूं।
प्रिये तुम्हारी याद में,
मैं मग्न कितनी बार हुआ हूं।
उन सपनों को सजाने में
मैं कितनी बार धुल हुआ हूँ।
प्यार के उन राहों में,
मैं नंगे पाँव खुब चला हूँ।
जन्म और मरण में
मैं विश्वास का एक सेतु हूं।
जीवन को हंसाने में
मैं दीप की एक बाती हूं।
रोशनी को ढूंढने में
मैं कई बार दीप बनकर जला हूं।
प्रिये तुम्हारी याद में
मैं हरपल व्याकुल सा रहा हूं।
प्रिये तुम्हारी खोज में
मैं राम बनकर भटक रहा हूं।
प्रिये तुम्हारी याद में
मैं रात-दिन से जाग रहा हूं।
— डॉ.कान्ति लाल यादव