अवश्य एक दिन
चलने की कोशिश की थी, चल नहीं पाए,
चाहा था संभलना, संभल नहीं पाए,
रुकेगा यह सिलसिला अवश्य एक दिन,
झिलमिल होंगे उद्यम-सितारे अवश्य एक दिन.
संतुष्टि रूठ गई, शिकायतों ने घेरा,
जाने कब क्यों कैसे डाला रिवाजों ने डेरा,
इनायतों का संतोष जागेगा अवश्य एक दिन,
जगमग होगा रवि इबादतों का अवश्य एक दिन.
हर दिन दिन डूब जाता है, चिड़ियाँ सो जाती हैं,
पूरी न हुईं जो मन्नतें, वो खिन्न हो जाती हैं,
चाहतों की गलियां हर्षित होंगी अवश्य एक दिन,
राहतों की कलियां पल्लवित होंगी अवश्य एक दिन.
जीवन की बांसुरी में सुरमय सरगम सजानी है,
अवसाद के अंधेरों की कालिमा हटानी है,
स्वर पकड़ने की समझ जागेगी अवश्य एक दिन,
प्रतिभाएं प्रोत्साहित होंगी अवश्य एक दिन.
— लीला तिवानी