रिटर्न गिफ्ट
“मुझे किसने पुकारा है?” इधर-उधर देखते हुए सूर्य देव ने आश्चर्य से कहा.
“दुखियारी या सुखियारी के सिवाय आपको और कौन बुला सकता है!” सुजाता ने कहा.
“एक बार कुंती ने मुझे बुलाया था, तुमने सुना तो होगा!”
“सुना भी है, समझा भी है और याद भी है.”
“फिर भी तुम्हारी जुर्रत, सॉरी-सॉरी इसे जुर्रत नहीं हिम्मत कहना चाहिए, हिम्मत कैसे हुई!”
“कुंती ने कुछ लेने के लिए पुकारा था, मैंने देने के लिए.” सूर्य देव को आश्चर्य चकित करते हुए सुजाता ने कहा.
“मुझे! आज तक तो मुझे किसी ने कुछ दिया नहीं, सब लेते-ही-लेते हैं, आप मुझे क्या दे सकती हैं?”
“मैं आपको धन्यवाद दे सकती हूं. वैसे तो धन्यवाद लेने-देने से कुछ नहीं बनता, पर दोनों के मन को शांति तो मिल जाती है!
“जरूर, आपका धन्यवाद सिर माथे, पर यह धन्यवाद किसलिए है, जरा सुनूं तो!”
“आप हमें देते हैं रोशनी, खुद तपकर गर्मी, सांस लेने के लिए ऑक्सीजन, हरियाली के लिए बरखा और अन्न-फल-फूल आदि हमें.”
“आज तो आपका प्रेमिल-स्नेहिल धन्यवाद पाकर मैं गद्गद हो रहा हूं. पहली बार मुझे किसी ने कुछ दिया है, मैं भी रिटर्न गिफ्ट के रूप में कहता हूं “धन्यवाद के लिए तुम्हारा भी धन्यवाद.”
— लीला तिवानी