लोक संस्कृति का मज़ाक
कहने को लोक संस्कृति को दे रहे बढ़ावा
लेकिन लोक संस्कृति का हो रहा वहिष्कार
लोक कलाकारों का हो रहा हर जगह निरादर
बाहरी कलाकारों पर हो रही नोटों की बौछार
अपने घर में ही लोक संस्कृति की कद्र नहीं
तो बाहर वालों से क्या करें शिकवा शिकायत
अपने कलाकार तो हैं घर का जोगी जोगड़ा
बाहर वालों पर होती है सब की इनायत
चम्बा का हो मिंजर या हो कुल्लू का दशहरा
हर जगह लगता है अपने कलाकारों पर पहरा
बाहर वालों को मिलता है पैसा होती है कदर
लोक कलाकारों को घाव मिलता है बहुत गहरा
क्यों होता है ऐसा अपने ही अपनों को हैं काटते
सामने से कुछ नहीं करते पीठ पर छुरा हैं घोंपते
यह कोई नई बात नहीं सदियों से होता है आया
मौका जब मिलता है तो गिद्ध की तरह हैं नोंचते
लोक संस्कृति के नाम पर उल्टा सीधा जो हैं गाते
फिर भी न जाने उनको सिर पर क्यों हैं बिठाते
तोड़ मरोड़ कर सत्यानाश कर दिया असली गानों का
पुरानी लोक धुनों को चुराकर अपनी हैं बताते
लोक संस्कृति को यदि वास्तव में है बचाना
तो असली लोक कलाकारों को होगा आगे लाना
अपनी बोली का यदि करना चाहते हो कल्याण
तो बिना शर्म के छोटे से बड़ों तक होगा इसे अपनाना
— रवींद्र कुमार शर्मा