अर्थ का अनर्थ
अर्थ का अनर्थ
हिन्दी भाषा में कभी-कभी वर्तनीगत अशुद्धियाँ कैसे अर्थ का अनर्थ कर देती हैं, वह इस कहानी से स्पष्ट हो जाएगा।
हमने बड़े ही प्यार और सम्मान से अपने पुत्र के नामकरण संस्कार का कार्ड प्रोफेसर साहब को दिया। कार्ड पढ़ते ही उन्होंने कार्ड स्वीकार करने से इनकार कर लौटा दिया। हमने आश्चर्यचकित हो इनकार का कारण पूछा।
प्रोफेसर साहब ने बताया, ”कार्ड के मुताबिक आप तो कार्यक्रम में कुत्तों को बुला रहे हैं। मैं क्या करूँगा वहाँ ?”
हम बोले, “सर आप तो मजाक कर रहे हैं ?”
प्रोफेसर साहब बोले, “बिल्कुल नहीं। मैं एकदम सीरीयस हूँ। आप कार्ड देखिए, इसका दूसरा ही शब्द ‘श्वजन’ लिखा है, जिसका मतलब है कुत्ते। उचित होता कि इसके स्थान पर ‘स्वजन’ लिखा जाता, जिसका मतलब है- ‘अपने लोग’।
हम बोले, “ओह, तो ये बात है। इस बार गलती हो गई सर। आइंदा ध्यान रखेंगे। अब तो आमंत्रण पत्र स्वीकार कर लीजिए।”
प्रोफेसर साहब बोले, “पहले आप पेन से इसे सुधारिए। फिर कार्ड दीजिए। मुझे ही नहीं, सभी आमंत्रित लोगों के कार्ड में सुधार कर आमंत्रण पत्र बाँटिए।”
हमने आश्वस्त किया और प्रोफेसर साहब को सुधरा हुआ कार्ड दिया, जिसे उन्होंने स्वीकार किया।
डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़