डॉक्टर
डॉक्टर
“चलो यहाँ से। हमें नहीं दिखानी है मुन्ने को इस डॉक्टर से।” श्रीमान् जी अपनी पत्नी का हाथ लगभग खींचते बाहर जाते हुए बोले।
“क्यों जी, क्या बात हो गई ? मुन्ने की हालत तो देखिए… बुखार से तप रहा है पूरा शरीर… और फिर आप तो हॉस्पिटल के रिसेप्शन काऊंटर में डॉक्टर की फीस भी पटा चुके हैं ?” श्रीमती जी परेशान हो गई थी।
“चुपचाप चलो यहाँ से। हम किसी दूसरे डॉक्टर से मुन्ने का इलाज कराएँगे।” श्रीमान् जी बोले।
“दूसरे डॉक्टर से ? पर इनसे क्यों नहीं ?” श्रीमती जी पति के व्यवहार से चकित थीं।
“मैं इस डॉक्टर को अच्छे से जानता हूँ। टीचर था कभी मैं इसका। सबसे कमजोर छात्रों में से एक। बड़ी मुश्किल से पासिंग मार्क्स ला पाता था। कोटे से डॉक्टरी की पढ़ाई कर लिया, पर हकीकत मैं जानता हूँ। सीट रोककर न रखे, इसलिए वहाँ भी इसे पास कर दिया गया है। अब ऐसे ही नौकरी भी लग गई। जानबूझकर मैं अपने बेटे की जान जोखिम में नहीं डाल सकता।” श्रीमान् जी स्कूटर स्टार्ट करते हुए बोले।
“हे राम ! अच्छा हुआ जी, आप समय पर देख लिए। सरकार को भी विचार करना चाहिए। कम से कम शिक्षक की नियुक्ति और डॉक्टर की पढ़ाई को तो कोटा से मुक्त कर देते। महज बीस-पच्चीस परसेंट नंबर पाने वाले शिक्षक बनकर बच्चों को क्या पढ़ाएँगे। एक बुझा हुआ दीपक दूसरे दीपक को क्या खाक जलाएगा। डॉक्टर, जिसे ईश्वर का दूसरा रूप माना जाता है, वहाँ प्रतिभाशाली लोग आएँगे, तो लोगों का विश्वास डॉक्टरों पर बना रहेगा।”
“तुम्हारी बात एकदम सही है, पर सरकार को इससे कोई वास्ता नहीं। हमारे देश में सत्ता में बैठे लोग बहुधा करोड़पति होते हैं, जो अपना खुद का इलाज विदेशों में कराते हैं।” श्रीमान् जी के स्वर में आक्रोश था।
— डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा