सुकून
आज तुमको वक्त तलाश रहा
वक्त को कभी तुम तलाशा करते
कलियाँ खिलना मौसम का मिजाज
हवाएं नजाने क्यों खुश्बू बिखेर गई।
सूरज की उन्हें न परवाह थी मगर
छाव का आशियाना जब तन्हा पेड़ था
पावों में पड़ गए हो इंतजार के छाले
फूलों ने गिर कर पावों को दिया सुकून।
— संजय वर्मा ‘दृष्टि ‘