कविता

हिम की बूंँदें

ठंडी–ठंडी सी पुरवाई, दस्तक दे चहुंँओर।

श्वेत वस्त्र धारण की धरती, हुई सुहानी भोर।।

दृश्य देख धुंँधला–धुंँधला सा,खींचे लंबी श्वास।

ठंड गुलाबी रोम–रोम में,पल जीवन में खास।।

सूर्य लालिमा तारापथ से, फैलाती आलोक।

गर्म ताप अरु देह छुए गर, हम पाते ना रोक।।

सौम्य भरी ये हिम की बूंँदें, करते पत्रक स्नान।

मोती जैसे चमके सारे, आकर्षित कर ध्यान।।

धरा समाहित हो जाती हैं,बरसे अंबर शीत।

नई कोपलें विकसित करतीं, और बढ़ातीं मीत।।

— प्रिया देवांगन “प्रियू”

प्रिया देवांगन "प्रियू"

पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़ [email protected]