कविता

कुछ तो बाकी है

मोरिया सी इठलाती चाल में, 

कजरारे नैनों की आड़ में, 

गुलाबी होठों की सरगम में,

कुछ तो बाकी है।

गालों की आई लाली में,

पलकों की झुकती प्याली में,

मिली नज़रों की गुस्ताखी में,

कुछ तो बाकी है।

नफरत की नज़रों से एक दीदार में,

सावन से शरद तक के सफर में,

सूरज को ढके घने काले बादलों में

कुछ तो बाकी है।

खामोशियों की आवाज में,

सहेजे हुए सूखे गुलाब की खुशबू में,

मन की सोई वीणा के टूटे तारों में,

कुछ तो बाकी है।

 — सौम्या अग्रवाल

सौम्या अग्रवाल

अम्बाह, मुरैना (म.प्र.)