सामाजिक

मोबाइल का रिश्तों पर प्रभाव

समय के साथ हमारा जीवन दिनों दिन तकनीक और सूचना प्रौद्योगिकी पर निर्भर होता जा रहा है। इसी क्रम में पिछले दो दशकों से मोबाइल का हमारे जीवन में दखल लगातार बढ़ता जा रहा है और आज तो ऐसा लग रहा है कि मोबाइल के बिना दुनिया ठहर सी जायेगी। आज हमारे आपके जीवन के हर क्षेत्र में मोबाइल का दखल बहुत गहराई से अपनी जड़ें जमा चुका है। छोटे बड़े काम घर बैठे आसानी से हो जाते हैं। दूरियां सिमट सी गई हैं। सुविधाओं की बाढ़ सी इस मोबाइल से आ गई है। लेकिन क्या हम आप यह महसूस करते हैं कि मोबाइल ने हमारे रिश्तों, हमारे घर परिवार यहां तक कि डाइनिंग रूम, बेडरुम, रसोईघर तो क्या बाथरूम तक में अपने घुसपैठ बना चुका है। आज मोबाइल के विभिन्न प्लेटफार्मों ने हमें इस तरह अपने चक्रव्यूह में फंसा लिया है कि हम एक घर परिवार और आमने सामने, आसपास होते हुए भी बहुत दूर होते लग रहे हैं। पारिवारिक वातावरण में मोबाइल प्रदूषण जहरीले वातावरण का घेरा मजबूत करता जा रहा है। आपसी संवाद का स्तर लगातार दम तोड़ता जा रहा है, रिश्ते औपचारिकता का शिकार बनते जा रहे हैं, दूरियां दिन प्रतिदिन खाई जैसी गहरी होती जा रही हैं।मोबाइल के सकारात्मक उपयोग के बीच नकारात्मक उपयोग का असर दिन प्रतिदिन हमारे जीवन में दिखता ही है। अपनत्व, आत्मीयता, संवेदनशीलता, मर्यादा, और रिश्तों के सम्मान का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। यही नहीं हमारे स्वास्थ्य पर भी इसका दुष्प्रभाव दिख रहा है। आज रिश्ते, उनके बीच के संबंध, सामंजस्य, संवेदनाएं, आत्मीयता और उनके बीच की मर्यादा दम तोड़ते जा रहे हैं। परिवार, रिश्तों की खुशियां जैसे अबूझ पहेली सी बनती जा रही है।यह अब एक पारिवारिक सामाजिक समस्या नहीं वैश्विक समस्या बनती जा रही है।जिसका दुष्परिणाम आने वाले समय में परमाणु ही नहीं रासायनिक हथियारों की जंग से ज्यादा खतरनाक होने जा रहा है। आवश्यकता इस बात कि है अब इस वैश्विक समस्या से समाधान का सार्वभौमिक समाधान के लिए व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक और संवैधानिक स्तर पर एक साथ मिलकर किते जाने की जरूरत है अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब बच्चे का जन्म, पारिवारिक सामाजिक संस्कार ही नहीं अंतिम संस्कार भी मोबाइल की कृपा का मोहताज होने से बहुत दूर नहीं है। जिसके घातक परिणाम के दोषी मोबाइल की आड़ में हम आप होंगे, क्योंकि तकनीक का विकास तो जारी ही रहेगी, जिसकी जरुरत भी है और आगे भी रहेगी। लेकिन उसके सकारात्मक उपयोग का दारोमदार हम पर है,न कि हम उसके गुलाम होकर अपने लिए असुविधा की ऊंची दीवार खड़ी करने में मगशूल होकर अपने लिए अनेकानेक समस्याएं खड़ी कर लें।

*सुधीर श्रीवास्तव

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