सामाजिक

सौभाग्य न सब दिन सोता है

हमारे जीवन में सौभाग्य/दुर्भाग्य का समावेशी स्वरूप गतिशील प्रगतिशील होकर साथ साथ चलता रहता है। धर्म ग्रंथों और ज्ञानियों के अनुसार सौभाग्य/दुर्भाग्य हमारे अपने कर्मों पर भी निर्भर करता है।  हम अपने जीवन में‌ जैसा कर्म करते हैं, उसके प्रतिफल स्वरूप ही हमें सौभाग्य दुर्भाग्य के रूप में परिणाम भी प्राप्त होता है, जब परिस्थितियाँ हमारे अनुकूल होती हैं तो हम कहते हैं कि ये मेरा सौभाग्य है। सौभाग्य की अपेक्षा तो हम सभी हमेशा रखते हैं, चाहे हम सकारात्मक रहें या नकारात्मक। जब भी हमें अपने अनुकूल परिणाम नहीं मिलते तो हम अपने दुर्भाग्य को कारण माना लेते हैं, न कि अपने कर्म को देखते हैं और न ही अपनी लापरवाही, और न ही गल्तियों को महसूस करते हैं।    सिक्के के दो पहलू होते हैं, इसी तरह हमारे जीवन के हर क्षेत्र में भी दो पहलू होते ही हैं। दिन/रात, सुख/दुःख, अच्छा/बुरा, धर्म/अधर्म, सकारात्मकता/नकारात्मकता, सफलता/असफलता, हार/जीत, विवाद/सुलह, । कुछ भी स्थाई नहीं है। हार है तो जीत भी है। दुर्भाग्य है तो सौभाग्य भी दस्तक दे रहा है। जब हर समय एक जैसा नहीं होता,  तो सौभाग्य या दुर्भाग्य हमेशा स्थाई कैसे हो सकता है। कभी किसी के सब दिन एक जैसे नहीं रहते, जीवन में अनुकूलता और प्रतिकूलता का अपना हिस्सा है। जो हमारे कर्म, श्रम, समर्पण, भाग्य और विश्वास के अनुसार बदलते रहते हैं। भगवान श्री राम का उदाहरण हमारे सामने है। आज के परिप्रेक्ष्य में स्व. धीरुभाई अंबानी का उदाहरण हम सभी की आंखें खोलने के लिए काफी। उदाहरणों की कमी नहीं है।अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम उसकी गहराई में कितना उतर कर उसकी सीख को ग्रहण करते हैं।         कहावत भी है बोया पेड़ बबूल का आम कहां से होय अर्थात हम जैसा बीज बोयेंगे, वैसी ही तो फसल  काटेंगे। सामान्य सी बात को हम सबको समझने की जरुरत है कि न सौभाग्य न सब दिन सोता है, न दुर्भाग्य ही सब दिन जगेगा। आज दुर्भाग्य है तो कल सौभाग्य भी अंगड़ाइयां लेकर दुर्भाग्य को पीछे ढकेल कर आगे आयेगा ही, यह निश्चित है, बस समय की बाध्यता या अनिवार्यता नहीं है। लेकिन हम आप अपने अच्छे कर्मों से सौभाग्य को खुला आमंत्रण देकर दुर्भाग्य को समय पूर्व मात दे सकते हैं।       हर मानव का ये हमेशा प्रयास होना चाहिए कि हम अपने अभीष्ट कर्म, श्रेष्ठकर्म और पुण्यकर्म में कमी न रहने दें, जिससे हमारी किस्मत में दुर्भाग्य का प्रवेश मजबूती से हो सके और सौभाग्य हमें सोता हुआ नजर आये। हम अपने पुण्य/ अच्छे कर्म को बढ़ाकर और प्रतिकूल परिस्थितियों में धैर्य के साथ सकारात्मक रहते हुए हमें दुर्भाग्य को पीछे ढकेल कर सौभाग्य को आगे आने का खुला आमंत्रण दे सकते हैं। और अपने जीवन को संवार सकते हैं, दुर्भाग्य के मकड़जाल से बाहर आकर सौभाग्य का प्रसन्न भाव से स्वागत अभिनंदन करने का सुअवसर प्राप्त कर सकते हैं। 

*सुधीर श्रीवास्तव

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