लघुकथा

नासूर बने घाव

” बिट्टो ! ये डॉगी जब भी तुम्हें देखता है, काँच वाली खिड़की पर पंजे क्यों मारने लगता है। “

” वो, वो ना मेरी सहेली नीनू का पेट जोजो है। “

” और तुम भी उसे बड़ा प्यार जताती हो। तुम परेशान क्यों हो ? बताओ मुझे। अब तो नीनू कहीं चली गई है। फ़िर जोजो यहाँ कैसे ? “

बिट्टो अपने आँसू छुपा नहीं पाई। एक दिन वह नीनू के घर गई थी। घर में उसके पापा अकेले थे। नीनू कहीं गई थी। उसके पापा ने चॉकलेट देकर बिठाया। फ़िर अचानक उसे खूब चूमने लगे। तभी जोजो ने उनको बुरी तरह से काट लिया।

” अच्छा तो उस दिन… तुम घबराई हुई आई थी। कह रही थी जोजो ने तुम्हारी फ्रॉक फाड़ दी। “

बिट्टो अपनी मम्मा से लिपट कर रोने लगी, ” हाँ मम्मा ! उसके बाद से जोजो, अंकल को देखकर काटने दौड़ता। इसलिए नीनू की फैमिली दूसरे घर में शिफ्ट हो गई। जोजो तभी से उनके नौकर के पास है।”

“बिट्टो ! चलो तो, हम जोजो को अपने घर ले आते हैं।”

जैसे ही बिट्टो अपनी मम्मा के साथ जोजो को सहलाया, वह खुशी के मारे उछलने लगा। नौकर यह भी बताया कि जोजो के काटने का घाव साहब के हाथ में अभी तक ठीक नहीं हुआ है। 

बिट्टो की मम्मा बोली, “मासूम बच्चों की भावनाओं को घायल करनेवालों के घाव नासूर बन जाते हैं। “

— सरला मेहता

सरला मेहता

इंदौर म प्र