कविता

दंश

आज सर्वाधिक दंश झेल रही हैं
हमारी बहन बेटियां,
भले ही वो पहुंच रही हैं बुलंदियों पर
अपने साहस, शौर्य की पहचान से चकित कर रही हैं।
पर नारी सुलभ सुरक्षा से
खुद को महफूज नहीं पा रही हैं,
अब तो घर परिवार में भी
खुद को सुरक्षित नहीं पा रही हैं,
दुनिया समाज में रोज रोज घटती घटनाओं से
ऊपर से न सही भीतर से कांप रही हैं।
जिसके दोषी हम आप, समाज सब हैं
उन्हें दंश से बचा भी नहीं पा रहे हैं,
उल्टे उन्हें दंश ही दे रहे हैं
आखिर हम बहन बेटियों को निडरता से
जीने का अधिकार क्यों नहीं दे पा रहे हैं।

सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921