गजल
मुहब्बत इक अक़ीदत है कहा तुमने तो सच माना,
ख़ुदा की बख़्शी दौलत है कहा तुमने तो सच माना।
हमारी आंख के जुगनू तुम्हारी आंख में पलकर,
समझते हैं ये जन्नत है ,कहा तुमने तो सच माना।
कि जिसको वस्ल ने बांधा था अहसासों की जाली पर,
तू उस धागे की मन्नत है, कहा तुमने तो सच माना।
जुनूं की हद में रहकर इश्क़ करना जान दे देना,
इसी का नाम चाहत है कहा तुमने तो सच मान
न यादें हैं,न उम्मीदें, न रिश्तों की रियाकारी,
बहुत ये दिल को राहत है कहा तुमने तो सच माना।
चमकते चाँद से चेहरे पे नूरानी तबस्सुम ये,
किसी ग़म की शबाहत है, कहा तुमने तो सच माना।
कभी चेहरे से,लब से और कभी आंखों की जुम्बिश से,
‘शिखा’ तुमसे मुहब्बत है,कहा तुमने तो सच माना।
— दीपशिखा